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Disha bodh: डॉ. गुलाब कोठारी द्वारा दिशा बोध कार्यक्रम में दिए गए जीने के अनमोल टिप्स

फ्यूचर और पास्ट जीवन के बड़े शत्रु हैं। वर्तमान में जीना ही पूजा है।

कोटाMay 10, 2018 / 12:55 pm

Deepak Sharma

gulab kotari
कोटा . डॉ. गुलाब कोठारी ने छात्रों के साथ संवाद स्थापित करते हुए कहा कि आज उनसे उन विषयों पर बात करेंगे जिनकी चिंता कोई नहीं करता। जो पढ़ाई का हिस्सा नहीं हैं। 8 घंटे की पढ़ाई हमें देती क्या है सिर्फ कॅरियर की चिंता। इस चिंता से उबरने के लिए कुछ कर गुजरने की उम्र दांव पर लगा देते हैं। फ्यूचर और पास्ट जीवन के बड़े शत्रु हैं। वर्तमान में जीना ही पूजा है।
भाषा कैसी हो?
शब्द ब्रह्म है। जो ध्वनि से बनता है। जो नाद से जन्मती है और नाद आकाश से। जो निर्माण का जरिया है। इसीलिए प्रार्थना की जाती है ताकि हमारा निर्माण श्रेष्ठ हो। इसलिए अच्छी भाषा को जीवन में जगह दें क्योंकि जैसा उसका स्वरूप होगा वैसा ही जीवन का निर्माण होगा।

कमंडल के पानी का रहस्य?
ऋषियों को आशीर्वाद देते हुए देखा है। वह कमंडल से पानी हाथ में लेकर शरीर पर छिड़कते हैं। कभी सोचा है क्यों? क्योंकि उनकी साधना के शब्द वरदान बनकर पानी की उन बूंदों में समाहित हो जाते हैं जो आप पर गिरकर कल्याणकारी हो जाती है।
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सूर्य को अघ्र्य क्यों?
नाद के अतिरिक्त आकाश में जल समाहित हैं। जितना जल आकाश में समाहित है उतना ही हमारे शरीर में भी है। सूर्य को अघ्र्य देते समय प्रार्थना के जो शब्द गुनगुनाते हैं, वह इस जल के माध्यम से ब्रह्माण्ड से होते हुए ब्रह्म तक पहुंचते हैं और यही कल्याण का जरिया बनते हैं।

घर पर क्या ले जाएं?

बड़ा बनना है तो मन को समझना होगा। इसके लिए दिमाग की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि दिमाग व्यापार की चीज है। ऐसे में व्यापार की चीज को दफ्तर में ही छोड़कर जाएं और घर पर सिर्फ भक्ति और बड़प्पन ही लेकर जाएं। बुद्धि को लेकर घर चले गए तो घर खराब ही होगा। क्योंकि उसमें अहंकार होता है।
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व्यवहार कैसा हो?

हमें वही व्यवहार करना चाहिए जो मन से हो, दिमाग से तो सिर्फ छल होता है। उससे बचें।

गुठली बना दो खुद को
निरंतर बढ़ते संघर्ष के बीच सफलता हासिल करने का मूल मंत्र बताते हुए डॉ. कोठारी ने छात्रों को गुठली बनने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि यदि जीवन का परम लक्ष्य हासिल करना है, किसी भी मुश्किल पल को जीत सफलता हासिल करनी है तो खुद को एक गुठली की तरह खपाने के लिए तैयार रहना होगा। क्योंकि इसी गुठली में बड़े से बड़ा वट वृक्ष छिपा रहता है। जो उसके जमीन में गडऩे पर ही बाहर निकलता है।

स्वरूप को पहचानो
डॉ. कोठारी ने कहा कि क्या हम प्रार्थना ‘इतनी शक्ति देना दाताÓ के शब्दों का अर्थ समझते हैं? कृष्ण कह गए हैं कि मैं सभी के भीतर रहता हूं। फिर ऐसा कौन है जो शक्तिहीन है? कोई नहीं, अब प्रश्र है कि क्या में उस स्वरूप को पहचानता हूं। यदि में उसे नहीं जानता तो मेरा जीवन व्यर्थ है। क्या मैं शरीर हूं? शरीर तो जड़ है। उसे चलाने वाली शक्तितो मन, बुद्धि और आत्मा है। तीनों अदृश्य हैं। इनको अलग-अलग समझूंगा तभी मुझे अपना स्वरूप समझ आएगा।
हक से करें बात
कॉलेज में विषय पढ़ाए जा रहे हैं जिंदगी नहीं। जीवन मूल्य सिर्फ माता-पिता ही समझा सकते हैं। माता-पिता का सपना हैं आप इसलिए उनसे जुडि़ए और लडि़ए। क्योंकि 16 घंटे जीने का ज्ञान तो वही दे सकते हैं। आप उनका अंश हैं इसलिए वही आपको समझा सकते हैं कि जीवन के मायने क्या हैं। कुछ भी छोड़ दीजिए लेकिन माता-पिता के साथ बात करने, अपनी खामियों को दूर करने और बेहतर बनने का तरीका पूछना मत भूलिए।

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