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Rajasthan ka ran : अगर मामला 2003 की तरह बिगड़ा तो यह भाजपा के लिए अब तक का सबसे बड़ा झटका साबित होगा…

ऐसे में जो फैसला दिल्ली से अटल होकर आया हो उसकी अवेहलना भला कैसे कर जाते।

कोटाNov 02, 2018 / 07:12 pm

shailendra tiwari

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Rajasthan ka ran : अगर मामला 2003 की तरह बिगड़ा तो यह भाजपा के लिए अब तक का सबसे बड़ा झटका साबित होगा…

कोटा डिजिटल डेस्क. चुनावों में टिकट बंटवारे को लेकर भाजपा के केंद्र और प्रदेश नेतृत्व में एक बार फिर तकरार की खबरें सुर्खियां बनी है। एक और जहां मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे विधायकों को दोबारा टिकट देने की पैरवी कर रही है वहीं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ग्राउंड रिपोर्ट को आधार बनाकर ही टिकट देने के पक्ष में है। पार्टी के कई नेताओं को अब यह डर सता रहा है कि कहीं हालात 2003 जैसे न बन जाए। दरअसल 2003 में भी तत्कालीन भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वसुंधरा राजे और केंद्रीय नेतृत्व के बीच टिकटों को लेकर बात इतनी बिगड़ गई थी कि राजे नामांकन के एक दिन नाराज होकर पहले घर चली गई थी। हालांकि तब कागं्रेस सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही थी लेकिन मौैजूदा समय में भाजपा उस दौर से गुजर रही है। ऐसे में अगर शाह और राजे के बीच में टिकटों को लेकर जल्द कोई सहमति नहीं बनी तो इससे न केवल कार्यकर्ताओं के बीच गलत संदेश जाएगा बल्कि चुनावों से पहले यह भाजपा के लिए सबसे बड़ा झटका होगा।
जब अयोध्या की आंच भैरोंसिंह शेखावत की कुर्सी तक जा पहुंची..लेकिन फिर जो हुआ उसने राजस्थान की राजनीति को बदल कर रख दिया..


यह था पूरा मामला..
साल था 2003, भारतीय जनता पार्टी राजस्थान की राजनीति में पहली बार अपने सेनापति के बिना चुनाव मैदान में उतरी थी । ऐसा लग रहा था मानो बिना दुल्हे की कोई बारात हो। दरअसल तत्कालीन उपराष्ट्रपति और भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक भैरोंसिंह शेखावत सक्रिय राजनीति से सन्यास ले चुके थे। भाजपा ने तब अटल सरकार में मंत्री रही वसुंधरा राजे को राज्य की कमान सौंपी और बतौर सीएम उम्मीदवार प्रोजेक्ट कर दिया। ये बात प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं को नागवार गुजरी लेकिन तब राजनीति में मर्यादाओं का महत्व हुआ करता था, ऐसे में जो फैसला दिल्ली से अटल होकर आया हो उसकी अवेहलना भला कैसे कर जाते।
टिकट वितरण में राजे की ही चली…और आखिर में हुई प्रत्याशियों की घोषणा, जयपुर विधानसभा की बनी पार्क सीट से प्रताप सिंह खाचरियावास का नाम नदारद था। दिल्ली की बैठक में वसुंधरा खाचरिवास के नाम पर अड़ गई, लेकिन केंद्र द्वारा प्रस्ताव खारिज हो गया। वसुंधरा को झालरापाटन से नामाकंन दर्ज करना था लेकिन चुनाव से ऐन वक्त पहले वसुंधरा नाराज होकर घर पर बैठ गई। जयपुर से लेकर दिल्ली तक तहलका मच गया। तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने भाजपा के चुनावी रणनीतिकार प्रमोद महाजन को बुलवाया और राजे का घर आने को कहा। आडवाणी के घर बैठक में प्रमोद महाजन, वसुंधरा के अलावा जसवंत सिंह भी शामिल हुए। राजे ने पहुंचते ही कह दिया …ऐसे संगठन का काम नहीं किया जा सकेगा।
जब राजस्थान के चुनावों में अचानक हुई अजगर की एंट्री..
और वादे के मुताबिक ये अजगर कांग्रेस को निगल गया

घंटो की मंत्रणा के बाद राजे को मनाने की कोशिशें हुई..अगले दिन पत्रिका के मुख्य पेज पर महारानी कोपभवन में, मनाने के प्रयास शीर्षक से खबर प्रकाशित हुई। बनी पार्क से उम्मीदवार तो नहीं बदला लेकिन राजे मान गई । भाजपा की सत्ता में वापसी हुई और वसुंधरा राजे प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बन गई। राजे किस शर्त पर मानी इसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया लेकिन राजस्थान की राजनीति के इस चर्चित घटनाक्रम ने देख भर में खुब सुर्खियां बटौरी….

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