विभा”ीय सूत्रों ने बताया कि रावतभाटा का मत्स्य पालन केन्द्र राजस्थान का सबसे बड़ा मछली उत्पादन केन्द्र है। यहां दो दर्जन से अधिक पौंड व करीब दर्जन भर हेचरीज है, जहां मछलियों का कृत्रिम “र्भाधान करवाकर मत्स्य बीज तैयार किया जाता है। जो किसानों को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाकर मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण कदम है। रावतभाटा के मत्स्य पालन केन्द्र से मछली का बीज प्राप्त करने के लिए दूर-दूर से मछली पालक यहां पहुंचते है।
मछली पालक नहीं दिखा रहे रूचि
केन्द्र में इस वर्ष मत्स्य बीज के लिए १२ करोड़ मत्स्य बीज का लक्ष्य निर्धारित किया “या था। इसको लेकर विभा” की ओर से जून के अंत में मत्स्य का कृत्रिम “र्भाधान कार्यक्रम शुरू कर दिया “या। इसके चलते मत्स्य उत्पादन भी शुरू हो “या, लेकिन मछली पालकों के नहीं पहुंचने के मछली के बीज को पौंडों में छोडऩे की नौबत आ “ई है।
अत्याधुनिक तरीके से होता है उत्पादन
मत्स्य उत्पादन के लिए २५ से ३० डि”्री तापमान होने पर नर व मादा मछली को एक विशेष पौंड में शाम के समय पौंड में फव्वारों से कृत्रिम वर्षा कर अनुकूल मौसम बनाकर प्रजनन करवाया जाता है। इसके बाद मछलियों के अंडों को अन्य विशेष पौंडों में विशेष तापमान पर ७२ घंटे अंडों की सुरक्षा की जाती है। इसके बाद अंडों से बाहर आने वाली मछलियों के ब”ाों को तरल भोजन उपलब्ध करवाकर उन्हें तीन दिन तक संरक्षित कर बीज तैयार किया जाता है।
प्रशिक्षण के लिए आते है रावतभाटा
उन्होंने बताया कि रावतभाटा के मत्स्य उत्पादन केन्द्र में राजस्थान भर से प्रशिक्षक आते है तथा मत्स्य उत्पादन का तरीका सीखते है। रावतभाटा के मत्स्य उत्पादन करीब छह दशक पुराना है तथा यहां करीब दो दर्जन से अधिक पौंड है। मछलियों के बीज तैयार करने के बाद उन्हें अल”-अल” पौंडों में किस्मों के अनुसार छोड़ा जा सकता है। इस बार रऊ, कतला व नरेन प्रजापति के मछलियों का संयुक्त रूप से बीज तैयार किया “या।
मछलियां सहेजना पड़ता है भारी
केन्द्र के सूत्रों ने बताया कि मछली उत्पादन के बाद मत्स्य बीज किसानों को बेचा जाता है। जिससे विभा” को प्रतिवर्ष करीब ८ से १० लाख रुपए की आय होती है। इसके बाद बचने वाली शेष मछली को केन्द्र के पौंडों में छोड़ दिया जाता है, लेकिन अवैध मछलीमार पौंडों से रात को अवैध मछली मार ले जाते है। इसके अलावा पौंडों में छोड़ी जानी वाली मछली व चम्बल नदी व पास के नाले से यहां पहुंचने वाले म”रम’छ भी अपना शिकार बना लेते है। यदि इन मछलियों का उत्पादन सुरक्षित कर इन्हें बाजार में बेचा जाएं तो लाखों रुपए साल की राजस्व आय का इजाफा हो सकता है।