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कोटा

निगम के तत्कालीन आयुक्त समेत चार को सात-सात साल का कठोर कारावास

– एसीबी कोर्ट का फैसला, आरोपियों पर लगाया २१ लाख का अर्थदण्ड
-फर्जी दस्तावेजों से निगम सम्पत्ति का हस्तान्तरण करने के थे दोषी

कोटाMar 31, 2021 / 10:13 pm

Ranjeet singh solanki

निगम के तत्कालीन आयुक्त समेत चार को सात-सात साल का कठोर कारावास

निगम के तत्कालीन आयुक्त समेत चार को सात-सात साल का कठोर कारावास

कोटा. भ्रष्टाचार निवारण न्यायालय (एसीबी कोर्ट) के न्यायाधीश प्रमोद कुमार मलिक ने फ र्जी दस्तावेज से निगम सम्पत्ति का हस्तान्तरण करने पर दोषी पाए गए तत्कालीन नगर निगम आयुक्तव सेवानिवृत्त आरएएस अधिकारी कन्हैयालाल मीणा, कनिष्ठ अभियंता बब्बू गुप्ता, कनिष्ठ लिपिक जगन्नाथ व हरिसिंह को बुधवार ने वर्ष 2002 में दर्ज मामले में विक्रय स्वीकृति जारी करने के अपराध में सात-साल साल के कठोर कारावास एवं कुल २१ लाख रुपए के अर्थदण्ड से दण्डित किया है। इस मामले में आरोपी असलम शेर उर्फ मोहम्मद असलम, मालिक जयहिन्द प्रिण्टर्स, जगन प्रसाद कार्यालय अधीक्षक, रामपुरा निवासी सत्तू उर्फ सत्यप्रकाश शर्मा एवं ललित सिंह कार्यालय सहायक की मृत्यु होने से उनकेविरुद्ध न्यायालय ने कार्यवाही बंद कर दी गई है। सहायक निदेशक अभियोजन अशोक कुमार जोशी ने बताया कि 2002 को एसीबी के एएसपी यशपाल शर्मा को सूचना मिली कि निगम के कर्मचारी जगन प्रसाद कार्यालय सहायक, ललित सिंह कार्यालय सहायक, बब्बू गुप्ता कनिष्ठ अभियन्ता, जगन्नाथ कनिष्ठ लिपिक ने कन्सुआा निवासी हरिसिंह के साथ मिलीभगत कर अपने पद का दुरुपयोग करते हुए कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर निगम की सम्पत्ति भूखण्ड संख्या ८९५ शास्त्री नगर दादाबाड़ी को षड्यन्त्रपूर्वक हरिसिंह के नाम आवंटित कर राज्य सरकार को नुकसान पहुंचाया। यह भूखण्ड पूर्व में पत्रकार कान्तिचंद्र जैन को आवंटित हुआ था, जो बाद में निरस्त होने के कारण निगम की सम्पत्ति बन गया था। हरिसिंह ने झूठे शपथ पत्र व फ र्जी आवंटन-पत्र व फ र्जी रसीद आधार पर निगम के उक्त कर्मचारियों से मिलीभगत कर भूखंड अपने नाम करवा लिया था। एसीबी ने आरोपियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर अनुसंधान प्रारम्भ किया। अनुसंधान में तत्कालीन आयुक्त मीणा समेत तीनों कर्मचारी व हरिसिंह को दोषी माना था। कोर्ट ने हरिसिंह पर 7.50 लाख रुपए तथा शेष प्रत्येक तीनों आरोपियों पर 4.50 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। मृतक चारों लोगों की इस मामले में अलग-अलग भूमिका रही थी।
फर्जी दस्तावेज किए तैयार

एसीबी के अनुसंधान में सामने आया कि भूखंड निरस्त होने पर नगर विकास न्यास ने इस भूखण्ड सहित अन्य भूखण्डों की पत्रावलियां निगम में हस्तांतरित कर दी गई थी। इस पत्रावली की जानकारी आरोपियों को थी। जिन्होंने फ र्जी आवंटन-पत्र की फ ोटोकॉपीके आधार पर हरिसिंह को इस भूखण्ड की निर्माण स्वीकृति, रजिस्ट्री एवं बेचान की स्वीकृति जारी कर दी तथा कान्तिचंद्र की मूल पत्रावली को जानबूझकर कार्यालय में छिपाकर रख दिया और फ ाइलों में यह लिखा कि पत्रावली मद में नहीं है। फ र्जी कागजात के आधार पर नियमन करवाकर प्लॉट को प्रद्युमन कुमार शर्मा को ७ लाख ५० हजार रुपए में बेचान कर दिया। जिससे निगम को इतनी ही राशि का नुकसान हुआ। उधर, असलम शेर उर्फ मोहम्मद असलम, सत्यप्रकाश शर्मा आदि षड्यंत्र से फर्जी दस्तावेज तैयार किए थे।
न्यायालय का अभिमत : लोकसेवक भ्रष्ट हो जाए तो राष्ट्र की जड़ें कमजोर हो जाती है
न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए टिप्पणी की है कि जनतांत्रिक प्रशासन में किसी भी व्यवस्था को संचालित करने का दायित्व लोक सेवकों पर होता है। यदि लोकसेवक भ्रष्ट हो जाए तो राष्ट्र की जड़ें कमजोर हो जाती है। जिसका असर राष्ट्र के विकास पर पड़ता है।

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