बीते चार साल के चिकित्सा विभाग के आकड़ों को देखें तो ब्लॉक में 13 दम्पतियों ने एक या दो बेटी पर परिवार कल्याण अपनाया। इनमें से पांच दम्पती तो ऐसे हैं जिन्होंने एक बेटी के बाद ही नसबंदी ऑपरेशन करा लिया। बेटों की चाह नहीं रखी। इनमें बालूहेड़ा पीएचसी में 3, मोईकलां में 2, आंवा में 2, कमोलर में 1 सबसे ज्यादा धूलेट पीएचसी में पांच दम्पतियों ने परिवार कल्याण अपनाया। ब्लॉक चिकित्साधिकारी सांगोद डॉ. प्रभाकर व्यास कहते हैं, बेटी जन्म के बाद बिना बेटे का मोह त्यागकर परिवार कल्याण में कई दम्पती आगे आ रहे हैं। समाज में जागृति आ रही है लेकिन अभी लोगों में और जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है।
बदलनी होगी सोच
समाजशास्त्री भी मानते हैं कि कुल या वंश को आगे बढ़ाने में बेटों की चाह आज भी लोगों के जेहन में है। जबकि हर क्षेत्र में बेटियां बेटों से आगे हैं। लेकिन उन्हें पराया धन समझकर लोग बेटों की चाह रखते हैं। इसी सोच में बदलाव लाना जरूरी है। समाज में बेटियों को बराबरी के हक के बाद जागरूकता बढ़़ी है।
वर्ष 2016 : एक दम्पती ने दो बेटियों के बाद परिवार कल्याण अपनाया।
वर्ष 2017: आंकड़ा बढ़कर चार हो गया।
वर्ष 2018: इस वर्ष 5 दम्पती इसमें आगे आए।
वर्ष 2019: इस वर्ष 7 माह में ही 3 दम्पतियों ने बेटियों पर ही परिवार कल्याण अपनाया है।