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22 साल की इस युवती की जिंदगी में टूटे तकलीफों के पहाड़ की जंजीर का पहला कुंदा साल 2003 में जुड़ा, जब उसकी मां की असमय मौत हो गई। महज पांच-छह साल की उम्र में लगे इस सदमे को वह बर्दाश्त न कर पाई और सुधबुध खो बैठी। BIG NEWS: अलर्ट: खतरे में कोटा बैराज, राजस्थान की सुरक्षा पर लगा दांव, मंत्री-विधायक भी बेपरवाह
जब भी किसी महिला को देखती उसे मारने दौड़ पड़ती। घरवालों ने उसे लोहे की जंजीरों से बांध घर के कौने में पटक दिया। दो बार उसने इन जंजीरों को तोड़ा भी, लेकिन सामने भाभी को देख फिर आपा खो बैठी और उसे पटक सीने पर चढ़ बैठी। एक बार तो गला ही दबा दिया। नतीजतन, उसके जिस्म पर हमेशा के लिए जंजीरों का पहरा डाल दिया गया।
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पिता की खराब हुई किडनियांउसके पिता बताते हैं कि उन्होंने आठ दस साल तक उसका खूब इलाज कराया। भूख प्यास की सुध छोड़ इतना भागे कि उनकी दोनों किडनियां ही फेल हो गई। सारी जमा पूंजी बेटी के इलाज पर खर्च कर चुके थे, इसलिए अपना इलाज कराने की हिम्मत ही नहीं जुटा सके।
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नहीं मिला बेड
सामाजिक कार्यकर्ता लोकेश तिवारी को युवती का हाल पता चला तो वह उसकी जंजीरों को तुड़वा कोटा ले आए, लेकिन इलाज कराने नए अस्पताल ( Hospital ) पहुंचे तो वहां भी बदकिस्मती ने उसका साथ नहीं छोड़ा। डॉक्टर मिले, दवाएं मिलीं और अच्छे इलाज का वायदा भी, लेकिन कुछ नहीं मिल सका तो खचाखच भरे मनोचिकित्सा वार्ड ( psychiatric ward ) में ठहरने की जगह। नतीजतन जमीन पर पट्टी लगाई गई और उसी पर सुलाकर जनसहयोग से उसका इलाज शुरू हुआ। ( human story ) मदद की दरकार
उसके पिता की माली हालत ऐसी है कि वह उसके लिए दवाएं तक नहीं खरीद सकते। बेटी के इलाज को वह पहले से ही दो तीन लाख रुपए का कर्ज ले चुके हैं। दो बेटे हैं, एक मजदूरी करता है और दूसरा साढ़े चार हजार रुपए महीने की नौकरी।
तीन गंभीर बीमारियां
नए अस्पताल के अधीक्षक डॉ. सीएस सुशील बताते हैं कि उसे मानसिक विक्षिप्तता ( mental Insanity ) के साथ मिर्गी जैसी तीन बीमारियां हैं। जिनका इलाज लम्बा चलेगा। इसके लिए पैसों की जरूरत तो पड़ेगी ही। हालांकि वह बताते हैं कि युवती की जंजीरें खुलवा दी हैं। पहले बेड खाली नहीं था, लेकिन अब फीमेल वार्ड में बेड खाली करवाकर उसे भर्ती कर दिया है।