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Human story: मां का साया उठते ही जहन्नुम बन गई बेटी की जिंदगी, 15 साल जंजीरों में रही कैद

kota News, kota Hindi News, Human Story: पांच साल की उम्र में मां का साया सिर से छिन गया… लाख कोशिशों के बाद भी सदमे से उबर न सकी तो मानसिक आघात ने सुध-बुध छीन ली.

कोटाJul 11, 2019 / 01:59 am

​Zuber Khan

Human Story

मां का साया उठते ही जहन्नुम बन गई बेटी की जिंदगी, 15 साल जंजीरों में रही कैद

कोटा. पांच साल की उम्र में मां का साया सिर से छिन गया… लाख कोशिशों के बाद भी सदमे से उबर न सकी तो मानसिक आघात ने सुध-बुध छीन ली… महिलाओं को देखते ही उन्हें मारने दौड़ती तो लोगों ने जंजीरों में बांध चलने-फिरने की भी आजादी छीन ली… पिता इलाज भी कराते तो उनकी किडनियां दगा दे गईं… और अब जैसे-तैसे लोगों ने जंजीरों से मुक्त करा अस्पताल पहुंचाया तो वहां मौजूद भीड़ ने वार्ड में जगह मिलने की उम्मीद भी छीन ली। रेलगांव की एक युवती की जिंदगी में डेढ़ दशक पहले जंजीरों ने ऐसा दखल दिया कि उससे हर इंसानी हक तक छीन लिया है।
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22 साल की इस युवती की जिंदगी में टूटे तकलीफों के पहाड़ की जंजीर का पहला कुंदा साल 2003 में जुड़ा, जब उसकी मां की असमय मौत हो गई। महज पांच-छह साल की उम्र में लगे इस सदमे को वह बर्दाश्त न कर पाई और सुधबुध खो बैठी।

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जब भी किसी महिला को देखती उसे मारने दौड़ पड़ती। घरवालों ने उसे लोहे की जंजीरों से बांध घर के कौने में पटक दिया। दो बार उसने इन जंजीरों को तोड़ा भी, लेकिन सामने भाभी को देख फिर आपा खो बैठी और उसे पटक सीने पर चढ़ बैठी। एक बार तो गला ही दबा दिया। नतीजतन, उसके जिस्म पर हमेशा के लिए जंजीरों का पहरा डाल दिया गया।
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पिता की खराब हुई किडनियां
उसके पिता बताते हैं कि उन्होंने आठ दस साल तक उसका खूब इलाज कराया। भूख प्यास की सुध छोड़ इतना भागे कि उनकी दोनों किडनियां ही फेल हो गई। सारी जमा पूंजी बेटी के इलाज पर खर्च कर चुके थे, इसलिए अपना इलाज कराने की हिम्मत ही नहीं जुटा सके।
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नहीं मिला बेड
सामाजिक कार्यकर्ता लोकेश तिवारी को युवती का हाल पता चला तो वह उसकी जंजीरों को तुड़वा कोटा ले आए, लेकिन इलाज कराने नए अस्पताल ( Hospital ) पहुंचे तो वहां भी बदकिस्मती ने उसका साथ नहीं छोड़ा। डॉक्टर मिले, दवाएं मिलीं और अच्छे इलाज का वायदा भी, लेकिन कुछ नहीं मिल सका तो खचाखच भरे मनोचिकित्सा वार्ड ( psychiatric ward ) में ठहरने की जगह। नतीजतन जमीन पर पट्टी लगाई गई और उसी पर सुलाकर जनसहयोग से उसका इलाज शुरू हुआ। ( human story )

मदद की दरकार
उसके पिता की माली हालत ऐसी है कि वह उसके लिए दवाएं तक नहीं खरीद सकते। बेटी के इलाज को वह पहले से ही दो तीन लाख रुपए का कर्ज ले चुके हैं। दो बेटे हैं, एक मजदूरी करता है और दूसरा साढ़े चार हजार रुपए महीने की नौकरी।
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तीन गंभीर बीमारियां
नए अस्पताल के अधीक्षक डॉ. सीएस सुशील बताते हैं कि उसे मानसिक विक्षिप्तता ( mental Insanity ) के साथ मिर्गी जैसी तीन बीमारियां हैं। जिनका इलाज लम्बा चलेगा। इसके लिए पैसों की जरूरत तो पड़ेगी ही। हालांकि वह बताते हैं कि युवती की जंजीरें खुलवा दी हैं। पहले बेड खाली नहीं था, लेकिन अब फीमेल वार्ड में बेड खाली करवाकर उसे भर्ती कर दिया है।

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