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Shri Krishna Janmashtami: श्रद्धा का ऐसा भाव, युद्ध में साथ रखते थे बृजनाथजी

Shri Krishna Janmashtami: शहरवासी हमेशा से ही कृष्ण भक्ति से ओतप्रोत रहे हैं तो यहां के शासकों की कहानियां और भी अनूठी है। उन पर श्याम रंग की अनूठी छाप थी। महाराव भीमङ्क्षसह प्रथम पर तो भगवान कृष्ण की भक्ति का ऐसा रंग चढ़ा था कि उन्होंने अपना नाम कृष्ण दास कर दिया और शहर का नाम नंदग्राम कर लिया था।

कोटाAug 19, 2022 / 01:11 pm

Hemant Sharma

कोटा के शासकों पर श्याम रंग की अनूठी छाप रही है

श्रद्धा का ऐसा भाव, युद्ध में साथ रखते थे बृजनाथजी

हेमंत शर्मा
Shri Krishna Janmashtami: शहरवासी हमेशा से ही कृष्ण भक्ति से ओतप्रोत रहे हैं तो यहां के शासकों की कहानियां और भी अनूठी है। उन पर श्याम रंग की अनूठी छाप थी। कोटा महाराव भीम सिंह प्रथम पर तो भगवान कृष्ण की भक्ति का ऐसा रंग चढ़ा था कि उन्होंने अपना नाम कृष्ण दास कर दिया और शहर का नाम नंदग्राम कर लिया था।
वह अपने आप को कृष्ण का सेवक ही समझते थे। उनकी कृष्ण भक्ति के कई उदाहरण हैं। राव माधोसिंह म्यूजियम ट्रस्ट के क्यूरेटर आशुतोष आचार्य बताते हैं कि महाराव भीम सिंह प्रथम ने ही बृजनाथजी का मंदिर बनवाया था। वह युद्ध क्षेत्र में भी बृजनाथजी को हाथी के ओहदे में अपने समक्ष रखते थे और उनके सानिध्य में युद्ध लड़ते थे। उन्होंने अंतिम युद्ध पंथार में लड़ा। इसमें वीरगति को प्राप्त हुए। इस दौरान भी बृजनाथजी उनके साथ थे। आचार्य के अनुसार वह एक पल भी ठाकुरजी को अपने से दूर नहीं रखना चाहते थे।

हैदराबाद पहुंच गए बृजनाथ

महाराव के निधन के बाद अवसर देखकर बृजनाथजी के विग्रह व हाथी को निजामुल मुल्क लूटकर अपने साथ ले हैदराबाद ले गया था और कोषागार में रख दिया। वहां के एक सेठ को इस बात का पता चला तो उसने चिनकुलीन खां से विग्रह लेकर हैदराबाद में मंदिर बनाकर स्थापना करवाई व सेवा करते रहे।

फिर कोटा आए बृजनाथजी
आशुतोष बताते हैं कि बाद में महाराव दुर्जनशाल को इस बात का पता चला तो उन्होंने व्यास द्वारका दास को रियासत के प्रतिनिधि के रूप में हैदराबाद भेजा। आग्रह पर सेठ ने सहजता से बृजनाथजी का विग्रह सौंप दिया। महाराव 25 कोस दूर पूरे लवाजमे के साथ स्वागत को पहुंचे व यहां लाकर विग्रह को मंदिर में स्थापित किया गया।

राजपरिवार के आराध्य देव

बृजनाथजी राजपरिवार के आराध्य रहे हैं। आज भी कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर पूर्व राजपरिवार के सदस्य कृष्ण जन्म दर्शन के समय मंदिर में आते हैं। कृष्णजन्माष्टमी समेत अन्य पर्व धूमधाम से मनाए जाते हैं।

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