हैदराबाद पहुंच गए बृजनाथ महाराव के निधन के बाद अवसर देखकर बृजनाथजी के विग्रह व हाथी को निजामुल मुल्क लूटकर अपने साथ ले हैदराबाद ले गया था और कोषागार में रख दिया। वहां के एक सेठ को इस बात का पता चला तो उसने चिनकुलीन खां से विग्रह लेकर हैदराबाद में मंदिर बनाकर स्थापना करवाई व सेवा करते रहे।
फिर कोटा आए बृजनाथजी
आशुतोष बताते हैं कि बाद में महाराव दुर्जनशाल को इस बात का पता चला तो उन्होंने व्यास द्वारका दास को रियासत के प्रतिनिधि के रूप में हैदराबाद भेजा। आग्रह पर सेठ ने सहजता से बृजनाथजी का विग्रह सौंप दिया। महाराव 25 कोस दूर पूरे लवाजमे के साथ स्वागत को पहुंचे व यहां लाकर विग्रह को मंदिर में स्थापित किया गया।
राजपरिवार के आराध्य देव बृजनाथजी राजपरिवार के आराध्य रहे हैं। आज भी कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर पूर्व राजपरिवार के सदस्य कृष्ण जन्म दर्शन के समय मंदिर में आते हैं। कृष्णजन्माष्टमी समेत अन्य पर्व धूमधाम से मनाए जाते हैं।