एक मरीज में जन्मजात बीमारी से तो एक का दुर्घटना के कारण कूल्हे का जोड़ खराब हुआ है। डॉ. आरपी मीणा का कहना है कि युवा बॉडी बिल्डिंग के शौक में जाने अनजाने स्टेरायड का सेवन कर मुसीबत को दावत दे रहे हैं। स्टेरायड के कारण हड्डियों में रक्त का संचार बंद हो जाता है और धीरे-धीरे जोड़ों का मूवमेंट खत्म हो जाता है। अंत में दर्द से बचने के लिए हिप रिप्लेसमेंट ही आखिरी रास्ता बचता है।
अनंतपुरा तलाब निवासी दिनेश (25) ने पिछले एक साल से पलंग पकड़ रखा था। उसने पौने दो साल पहले दोस्त की सलाह पर छह माह तक मसल्स बनाने की गोलियां खाई। फिर खाना बंद किया तो शरीर में कमजोरी बढ़ गई। दो माह में ही पैरों ने काम करना बंद कर दिया।
स्टेरायड से खत्म हुए जोड़ खेड़ारसूलपुर निवासी अशोक (30) स्पोंडीलाइटिस से पीडि़त था। इसकी वजह से शरीर जकड़ गया और कमर भी उससे प्रभावित हो गई। उसने ताकत के लिए गोलियां खाईं तो बीमारी और बढ़ गई। पांच साल से उपचार करवा रहा था, लेकिन फायदा नहीं हुआ। बीते 18 अगस्त से उसके पैरों ने काम करना बंद कर दिया।
ये भी मामले दादाबाड़ी निवासी रमेश (37) के दुर्घटना में हिप की बॉल व साकेट टूट गई थी। उनकी भी टीएचआर सर्जरी की है। साथ ही एक अन्य 53 वर्षीय महिला सायराबानो की हिप रीप्लेंसमेंट सर्जरी गुरुवार को होगी। महावीर नगर विस्तार योजना निवासी श्रीभगवान (34) को पैरों में दर्द के चलते चलने में तकलीफ होने लगी। बाद में पैरों ने काम करना बंद कर दिया
हर माह हो रहे 15 से 20 टीएचआर नए अस्पताल में दोनों यूनिटों में हर माह 15 से 20 टोटल हिप रीप्लेसमेंट सर्जरी हो रही है। पहली सर्जरी अगस्त 13 में हुई थी। इसके बाद डॉ. राजेश गोयल व डॉ. आर.पी. मीणा ने टीएचआर को बढ़ावा दिया। अब करीब हर साल डेढ़ सौ सर्जरी हो रही है।
सरकारी सिस्टम में बढ़ा भरोसा मरीजों का विश्वास सरकारी सिस्टम में बढ़ा है। मरीज ठीक होकर जाता है और दूसरों को भी सरकारी अस्पताल में आने की प्रेरणा देता है। साथ युवाओं को ध्यान देने की जरूरत है कि स्टेरायड या शरीर को बलिष्ठ बनाने की दवाओं के साइड इफेक्ट हो रहे हैं। ये हड्डियों के जोड़ों को कमजोर कर रहे हैं।
-डॉ. आरपी मीणा, प्रोफेसर, ऑर्थोपेडिक