बाढ़ से मची तबाही का मंजर देख सदमे से विवाहिता की दर्दनाक मौत, सपनों का आशियाना ढहा तो निकल गए प्राण
नतीजतन, कोटा बैराज के गेट खुलेंगे तो निचले इलाकों में फिर से बाढ़ के हालात बनेंगे, चूंकि खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है इसलिए चम्बल के किनारे बसे लोगों को योजना बनाकर डूब क्षेत्र से हटाना ही होगा। हालांकि उनके लिए टिन से घर बनाने की योजना पर काम चल रहा है। लोगों के खाते में सहायता राशि भी डाली जा रही है। उन्हें ड्राई राशन पिट भी दी जा रही है, लेकिन पुनर्वास का काम थोड़ा मुश्किल और लंबा होता है इसलिए बाढ़ से प्रभावित हुए लोगों को धैर्य रखना होगा। उनकी मदद के लिए पूरा शहर तैयार खड़ा है, परेशान होने या डरने की जरूरत नहीं है। बस उन्हें इस बार खुद सुरक्षित इलाकों में बसने के बारे में गंभीरता से विचार करना होगा।
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कैथून की बाढ़ का अनुभव काम आया12 और 13 सितम्बर के हालात देखकर हम आर्मी और एनडीआरएफ को पहले से ही हाई अलर्ट पर ले चुके थे। 14 सितम्बर की शाम को निचले इलाकों में फंसे लोगों को बाहर निकालने के लिए उन्हें मोबिलाइज भी करवा चुके थे। कुछ दिन पहले ही कैथून की बाढ़ से मिला अनुभव से आनन-फानन में तैयार की गई हमारी यह स्ट्रेटजी बेहद काम भी आई। शाम को ही जलशक्ति मंत्रालय का भी अलर्ट आ गया।
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बैराज से हालात का जायजा लेने के बाद शहर में घूम कर बचाव और राहत का काम देखते हुए मैं दफ्तर पहुंचा और रात में 12 बजे ही आईपीएस आरपीए, आईएएस, आरएएस और डीएलओ की आपात बैठक बुलाई। पूरी रात दफ्तर और बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा करने में गुजरी। सुबह होते ही फिर काम में जुट गए। पूरी टीम तीन-चार दिन सोई तक नहीं। इन्हीं की मेहनत थी कि हम लोगों को सुरक्षित निकाल सके।
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नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर! कवि हरिवंश राय बच्चन द्वारा लिखित कविता की ये चंद पंक्तियां शायद इस तस्वीर के लिए पूरी तरह से सार्थक साबित हो रही हैं। चंबल का रौद्र रूप भले ही अब शांत होकर पुन: अविरल धारा में परिवर्तित हो गया हो। बाढ़ से लोगों को राहत भी मिल गई। पर बाढ से तबाह हुए आशियाने आज भी बर्बादी की दास्तां कहते नजर आ रहे हंै। इसी तबाही के बीच उम्मीद की किरण जगाए कुछ बच्चे मंगलवार दोपहर को कोटा के कुन्हाड़ी क्ष्ैात्र स्थित हनुमानगढी क्षेत्र में जर्जर और क्षतिग्रस्त आशियानों के बीच मिट्टी के घरोंदे बनाते नजर आए।