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कोटा

111 साल पहले अंग्रेजोंं ने लगाया ऐसा चस्का कि अब साल में 2.66 अरब की चाय पी जाता है राजस्थान का यह शहर

चाय हो जाए… – पतीले में उबालकर फेंक दी जाती है 13.3 लाख किलो चाय पत्ती, खरीदने पर होता है 25.5 करोड़ रुपए खर्च- चाय पीने के लिए पत्ती से करीब दस गुना ज्यादा दूध, चीनी, अदरक और इलाइची पर करना पड़ता है खर्च

कोटाDec 14, 2019 / 05:24 pm

Rajesh Tripathi

कोटा. फ्री का ऑफर मुल्क में सरकारें ही नहीं बदलता, बल्कि जुबान का चस्का भी तब्दील करके रख देता है। यकीन नहीं होता तो चाय की केतली में झांक कर देख लीजिए। 111 साल पहले ईस्ट इंडिया कंपनी ने चाय का स्वाद चखाने के लिए पूरे देश में चाय की पत्ती मुफ्त में बांटी थी। इसका चस्का जुबान पर ऐसा चढ़ा कि एक सदी बाद अकेले कोटा के ही लोग सालाना 2.66 अरब रुपए की चाय सुड़क जाते हैं।
असम के कबीलाई लोगों की स्फूर्ति का राज जब चाय की शक्ल में अंग्रेजों के सामने आया तो उन्होंने सन 1835 से चाय के बागान लगाने और फिर उसका व्यावसायिक उत्पादन कर यूरोप भेजने का सिलसिला शुरू कर दिया, लेकिन सात दशक बाद भी आम हिंदुस्तानियों के बीच चाय अपनी जड़ें नहीं जमा सकी। अंग्रेजों ने हताश होने के बजाय लोगों को चाय का चस्का लगाने की अनूठी तरकीब खोजी। वर्ष 1907 में उन्होंने चाय के सेंपल देशभर में लोगों को फ्री में बांटना शुरू किया। तीन साल की कोशिशों का नतीजा यह रहा कि आम भारतीयों की जुबान पर चाय का चस्का चढऩे लगा। हालांकि कोटा में चाय की आमद अंग्रेजों के साथ ही हो चुकी थी। आजादी के बाद कोटा की कई कंपनियां चाय के कारोबार में मशगूल हुईं तो यहां के ब्रांड भी देशभर में छाने लगे।
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53.36 करोड़ कप चाय पी जाता है कोटा

अर्थशास्त्री डॉ. कपिल शर्मा के मुताबिक टी बोर्ड ऑफ इंडिया की ओर से जारी आंकड़ों पर नजर डालें तो कोटा में प्रति व्यक्ति चाय की सालाना खपत शहरी और ग्रामीण इलाकों के हिसाब से अलग-अलग है। गांव में चाय का चलन देर से आया और अब भी शहरों के मुकाबले कम है। आंकड़ों के मुताबिक कोटा के ग्रामीण इलाकों में अब भी 650 ग्राम प्रति व्यक्ति सालाना चाय की खपत होती है, जबकि शहरी इलाके में यह बढ़कर करीब 706.1 ग्राम प्रति व्यक्ति सालाना तक पहुंच जाती है। दोनों को मिलाकर देखा जाए तो कोटा में सालाना करीब 13.34 लाख किलो चाय की पत्ती खपत होती है। इसकी कीमत 25.54 करोड़ से ज्यादा बैठती है। कप के हिसाब से बात करें तो कोटा औसतन एक साल में 53.36 करोड़ कप चाय गटक जाता है। इसमें से 78 फीसदी खपत सिर्फ दूध की चाय में पडऩे वाली पत्तियों की है, जबकि 22 प्रतिशत हिस्सा ग्रीन टी, लेमन टी और कहवा आदि फ्लेवर्ड टी का है।
पत्ती से ज्यादा दूध-चीनी पर खर्च

दौर के साथ भले ही चाय पीने के तरीके और ब्रांड कितने भी बदल चुके हों, लेकिन अब भी 78 फीसदी कोटावासी दूध वाली चाय पीते हैं। यह अकेले चाय की पत्तियों से तो बनने से रही। इसके लिए दूध, चीनी, अदरक, इलाइची और गैस भी चाहिए। डॉ. शर्मा बताते हैं कि टी बोर्ड ऑफ इंडिया और विश्व खाद्य संगठन की सालाना रिपोर्ट के आधार पर चाय बनाने में पत्ती से करीब दस गुना ज्यादा खर्च बाकी सामान पर होता है। अकेले कोटा में ही इन सब पर सालाना औसत खर्च 2.41 अरब रुपए बैठता है।
चाय पत्ती:- औसत सालाना खपत

श्रेणी – किलोग्राम – कीमत रुपए
कुल – 1334166.584 – 255407388.05

शहरी – 830800.084 – 167821617.05
ग्रामीण – 503366.5 – 87585771

तैयार चाय:- औसत सालाना पेय

श्रेणी – कुल कप – प्रति व्यक्ति कप
कुल – 533666633.76 – 273.5
शहरी – 332320033.76 – 282.4
ग्रामीण – 201346600 – 260

चाय पीने पर सालाना औसत खर्च

श्रेणी – रुपए
कुल – 2668333168.8

शहरी – 1661600168.8
ग्रामीण – 1006733000

पत्ती से ज्यादा बनाने पर खर्च
श्रेणी – रुपए
कुल – 2412925780.8

शहरी – 1493778558.8
ग्रामीण – 919147229

(चाय बनाने के लिए दूध, चीनी, अदरक, इलाइची और गैस पर होने वाला खर्चा)

चाय की सालाना प्रति व्यक्ति औसत खपत
शहरी – 706.1 ग्राम प्रति व्यक्ति सालाना
ग्रामीण – 650 ग्राम प्रति व्यक्ति सालाना

चाय पत्ती की औसत कीमत
शहरी – 202 रुपए प्रति किलोग्राम

ग्रामीण – 174 रुपए प्रति किलोग्राम
एक कप तैयार चाय की औसत कीमत – 5 रुपए
एक किलोग्राम पत्ती में लगभग 400 कप चाय तैयार होती है

78 प्रतिशत खपत ब्लैक टी और 22 प्रतिशत खपत ग्रीन, मसाला, फ्लेवर्ड, कहवा एवं टी बैग

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