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क्यों करती हैं बालिकाएं ऐसा..पहले सजाई जाती है, फिर जलाशय में बहा दी जाती है लाडियां

कोटा में देव शयनी एकादशी पर बुधवार को लाडी बुवणी पर्व श्रद्धा से मनाया। इस मौके पर बालिकाओं ने कपड़े से छोटी छोटी गुडि़या बनाकर जलाशय में बहाई

कोटाJul 02, 2020 / 01:24 pm

Hemant Sharma

क्यों करती हैं एसा..पहले सजाई जाती है, फिर  जलाशय में बहा दी जाती है लाडियां

ladi buvni

कोटा. देव शयनी एकादशी पर बुधवार को लाडी बुवणी पर्व श्रद्धा से मनाया। इस मौके पर बालिकाओं ने कपड़े से छोटी छोटी गुडि़या बनाकर जलाशय में बहाई। विभिन्न स्थानों पर जलाशयों पर लोक पर्व की रौनक नजर आई। थेगड़ा पुलिया, नहर के किनारे, गोविंद धाम किशोरपुरा समेत विभिन्न क्षेत्रों में जलाशयों पर सजधजकर बालिकाएं पहुंची। उत्सुकता पूर्वक उन्होंने लाडियों को पानी में बहाया।
बालिकाओं के साथ आई महिलाओं ने बताया कि पर्व क्यों मनाते हैं, इसके बारे में विशेष जानकारी नहीं, लेकिन कहा जाता है कि श्रेष्ठ वर की कामना के लिए बालिकाएं लाडी बहाती है। माना जाता है कि उन्हें अच्छी दुल्हन मिलती है। थेगड़ा पुलिया पर वानिया, हिमांशी, तुलसी व हिमांशी ने बताया कि यह पर्व हमारी संस्कृति का हिस्सा है। क्यों मनाते हैं इसकी जानकारी नहीं।
इससे पहले बालिकाएं सुबह से ही लाडी बोहनी पर्व की तैयारियों मंे व्यस्त रही। उन्होंने रंग बिरंगे कपड़ों से छोटी छोटी गुडि़या बनाई और उन्हें दुल्हन की तरह सजाया। शाम को गुड़ धाणी का प्रसाद तैयार कर जलाशयों पर पहुंची और पूजा अर्चन कर लाडी बहाई।

इनका है कहना
लोक कलाकार घांसी लाल पंकज बताते हैं कि यह हमारा लोक पर्व है। इसे देवशयनी एकादशी पर मनाया जाता है। श्रेष्ठ वर की कामना को लेकर बेटियां रंग बिरंगे कपड़ों से गुडिया बनाकर दुल्हन की तरह सजाती है। विशेष गीत गातीं है। इससे जुड़ी और भी कई बातें हैं। इसमें परिवार की सुख समृद्धि की कामना व अच्छी बरसात होने व खुशहाली की भावना भी छिपी हुई है।

लड़के नदी में छलांग लगाकर लूटते हैं लाडियां
घांसी लाल पंकज बताते हैं कि धीरे धीेर ये लोक पर्व फीके पड़ते जा रहे हैं। पहले जलाशयों पर मेला लग जाता था। गांवों में तो लड़कियां लाडिया बहाने जाती थीं, लड़के नदी में छलांग लगाकर लाडियां लूटते। इसके पीछे मान्यता थी कि जो अच्छी लाडी लूटता उसे अच्छी दुल्हन मिलती थी। पानी के बहाव में लाडियों को लूटना लड़कों के साहस को भी दिखाता था। अब तो वैसी बरसात भी नहीं होती। वक्त के साथ सब कुछ बदल रहा है।

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