लॉकडाउन का असर: कोटा में 2 घंटे में 10 गुना बढ़े सब्जियों के दाम, 200 रुपए किलो बिकी मिर्ची
वृद्धा चम्पाबाई की यह कहानी तस्वीर के उस दूसरे स्याह पहलू को उजागर कर गई, जिसमें शहर समेत जिले में एक जने को भी भूखा नहीं रहने देने के दावे जोर-शोर से किए जा रहे थे। कोई मुख्यमंत्री सहायता कोष में आटे के बैग देने तो कोई अपना एक दिन का वेतन देने के दावे कर फूला नहीं समा रहा, लेकिन वृद्धा चम्पाबाई भी हकीकत को बयां कर गई। ऐसा नहीं कि जिले में वो अकेली ऐसी वृद्धा हो, ऐसे सैकड़ों लोग है जो दिहाड़ी छिन जाने से दूसरों के आसरे पर हैं। उसकी यह बेचारगी जिला प्रशासन, नगर परिषद और उन तमाम सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों को धत्ता बताने वाली है। वो शहर की पॉश कॉलोनी पुरानी सिविल लाइन में दिन गुजार रही है, जहां से चंद मीटर की दूरी पर नगर परिषद का कार्यालय व धर्मशाला है। यातायात पुलिस व चिकित्सा भवन कार्यालय से तो उसके पड़ाव के दूरी के बीच महज एक दीवार भर है।खुद रोजगार कर भरती है पेट
वृद्धा चम्पाबाई ने बताया कि वह बरसों से स्टेशन रोड पर एक गुमटी में मिट्टी के बर्तन समेत अन्य वस्तुएं बेचकर अपना जीवन गुजार रही थी। नगर परिषद की ओर से शहर के सौन्दर्यीकरण के नाम से इस पूरे रोड से फुटकर व्यापारियों को हटा यहां नवविकसित महात्मा गांधी मार्केट में जगह दी गई, लेकिन उसे यहां जगह नहीं मिली। ऐसे में इसी बाजार में जैसे-तैसे जगह ढूंढ़ रह रही है। एक दिन वह धर्मशाला में रही, लेकिन दूसरे दिन वहां से निकाल दिया। इन दोनों दिन उसे खाने के पैकिट जरूर मिले, लेकिन अब कोई मदद के लिए नहीं आ रहा।
भगवान करेंगे सबकी रक्षा
पत्रिका टीम ने जब उससे दुनिया में फैली बीमारी के बारे में पूछा तो उसने अनभिज्ञता जताई, लेकिन कहा कि कोई बड़ी बीमारी है, जिससे लोग डर गए, सड़कें सूनी हो गई। उसका कहना था कि संकट की इस घड़ी में भगवान सब अच्छा करेंगे।