परम्पराओं के मुताबिक इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। देश के विभिन्न राज्यों में पर्व को अलग-अलग नामों से जाना जाता है और इसे हर बार 14 जनवरी को ही मनाया जाता है। हालांकि कभी-कभार मकर संक्रांति एक दिन आगे खिसक कर 15 जनवरी को भी मनाई गई है। देशभर में मकर संक्रांति से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। जिनके बारे में आप शायद ही जानते होंगे। आइए हम आपको बताते हैं संक्रांति से जुड़ी मान्यताएं और क्यों मनाया जाता है ये त्यौहार…
यह हैं मान्यताएं
– मकर संक्रांति के दिन ही गंगा-जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में मिली थीं।
– मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था।
– आज से 1000 साल पहले मकर संक्रांति 31 दिसंबर को मनाई जाती थी। पिछले एक हज़ार साल में इसके दो हफ्ते आगे खिसक जाने की वजह से 14 जनवरी को मनाई जाने लगी। अब सूर्य की चाल के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 5000 साल बाद मकर संक्रांति फरवरी माह के अंत में मनाई जाएगी।
-सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने को मकर संक्रांति कहा जाता है। साल 2012 में यह 14 जनवरी की मध्यरात्रि में था, इसलिए उदय तिथि के अनुसार मकर संक्रांति 15 जनवरी को पड़ी थी। ऐसे में लोगों को दो दिन दान-पुण्य करने का मौका मिला।
– महाराष्ट्र में माना जाता है कि मकर संक्रांति से सूर्य की गति तिल-तिल बढ़ती है, इसलिए इस दिन तिल के विभिन्न मिष्ठान बनाकर एक-दूसरे को बांटते हैं और शुभ कामनाएं देकर त्योहार मनाया जाता है।