कुछ दिनों बाद या अगले माह जब बारिश होगी तो यही मिट्टी फिर से पानी के साथ तालाब की गहराई को पाट देगी। तीनों जगह 15 दिन से से भी अधिक समय से नरेगा का काम चल रहा है। इस अवधि में कई अधिकारी आए और गए, लेकिन इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। अटरू में बुधसागर तालाब बड़े भूभाग पर फैला है। यहां हर साल नरेगा केे तहत खुदाई पर लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं। हर बार खुदाई तालाब के ही पास कराई जाती है। इससे तालाब अन्तिम छोर पर गहरा नहीं हो पाता। जानकारों का मानना है कि तालाब के अंतिम छोर की भी खुदाई कराई जाए। चाहे नरेगा श्रमिको से लंबाई-चौडाई-गहराई कम ले ली जाए, लेकिन तालाब से निकलने वाली मिट्टी पाल पर ही डाली जाए, जिससे तालाब गहरा हो तो गर्मी के समय अधिक दिनों तक पानी रह सके।
मूंडला रोड स्थित तालाब पर श्रमिकों से काम करा रही मेट सिमरन व पवन चक्रधारी बताते है कि मेट का तो समय प्रात: 6 से दोहपर 1 बजे तक निर्धारित है। श्रमिकों का समय निर्धारित नहीं है। ऐसे में कितने ही श्रमिक तो तडके चार-पांच बजे आकर गड्ढा खोदने लगते हैं और मिट्टी तालाब में ही डाल जाते हंै। सुबह 6 बजे आने वाले अधिकांश श्रमिकों से हम बार-बार कहते है, लेकिन वह नहीं सुनते।
बृजमोहन बैरवा, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, बारां