से, और साथ में
गिरजाघर से ।।
रोजगार के लिए सुबह
जब, शहर चले
जाते हैं बच्चे ।
मां तक तक पथ तकती रहती, जब तक लौटें
नहीं शहर से ।।
घर में मां है इसका
मतलब, दया का दरिया
है घर में ।
सदा स्नेह के मोती
मिलते, इस दरिया की
लहर-लहर से ।।
जिसके साथ दुआ है
मां की, उसको मंजिल
मिल जाती है।
चाहे समतल राह से
गुजरे, चाहे गुजरे कठिन डगर से।।
-अजहर हाशमी, वरिष्ठ साहित्यकार
‘मां तेरी महिमा का कैसे मैं बखान करूं,
‘मां तेरी महिमा का कैसे मैं बखान करूं,
इन छोटे से शब्द कोश से कैसे तेरा बखान करूं
मैं कच्ची गीली मिट्टी थी, तूने ही मुझको ढाला है
तेरी ममता की छाया में जीवन मैंने पाया है
तेरी अंगुली थाम कर मैंने दुनिया की दूरी नापी है,
तेरे कदमों में क्यों न जीवन कुर्बान करूं…
-कृति किरण द्विवेदी, शिक्षिका