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कोटा

भूलकर भी मत पीना यहां का पानी, टूटने लगेंगी हड्डियां हो जाएगा कैंसर

अच्छी उपज हासिल करने के लिए दिनोंदिन बढ़ता खाद का इस्तेमाल अनाज और सब्जियों के बाद अब भूमिगत पानी में भी जहर घोलने लगा है। आलम यह है कि भूगर्भीय जल में नाइट्रेट और फॉस्फेट की मात्रा इतनी अधिक हो चुकी है कि कोटा के 1044 गांवों का पानी पीने लायक ही नहीं बचा। इसे घातक जहर में तब्दील करने के लिए बाकी कसर बेक्टेरिया और आयरन पूरी करने में जुटे हैं।

कोटाMay 14, 2019 / 09:50 pm

​Vineet singh

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कोटा.

केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय की ओर से हाल ही में जारी पेयजल गुणवत्ता रिपोर्ट में जमीनी पानी की गुणवत्ता को लेकर भयावह खुलासा हुआ है। सरकारी प्रयोगशालाओं में परीक्षण के बाद सरकार को मिले नतीजे बताते हैं कि कोटा जिले का पानी तेजी से जहरीला होता जा रहा है। खेतों में बेतरतीब तरीके से भुरकी जा रही खाद की वजह से पानी में नाइट्रेट और फ्लोराइड जैसे घातक रसायनों का जहर तेजी से बढ़ रहा है। ऊपर से आयरन और अर्सेनिक की बढ़ती मात्रा पानी को न सिर्फ खारा कर रही हैं, बल्कि बेक्टेरिया की मौजूदगी के चलते घातक बीमारियों की वजह भी बनती जा रही है।
पांच साल में बिगड़े हालात

पेयजल गुणवत्ता रिपोर्ट के आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2009-10में केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय ने पूरे जिले में 12,035 जल स्त्रोतों और 401 सार्वजनिक नलों से पानी के सेम्पल लिए थे। कोटा जिला और ब्लॉक मुख्यालय पर स्थापित चार लैब में जब परीक्षण कराया तो सिर्फ पांच रिहायशी इलाकों में फ्लोराइड और तीन में नाइट्रोजन की मात्रा मानकों से ज्यादा मिली। जबकि दो गांवों के अंडरग्राउंड वाटर में घातक बेक्टेरिया मिलने से भूजल वैज्ञानिक हैरत में पड़ गए। बावजूद इसके सिर्फ तीन गांवों का पानी ही ऐसा मिला जो पीने योग्य नहीं था, लेकिन पांच साल बाद जब फिर से पानी की गुणवत्ता जांची तो हालात बेहद भयावह हो चुके थे।
जहर बन चुकी खाद

वर्ष 2015-16 में कोटा जिले के 32709 जल स्त्रोतों और 401 सार्वजनिक नलों के पानी की गुणवत्ता जांची तो 1974 में नाइट्रोजन और 551 जगहों पर फ्लोराइड की मात्रा जहरीला स्तर छू चुकी थी। जबकि 41 जगहों में आयरन मात्रा बेतहाशा बढ़ी हुई मिली। इसके चलते 448 जल स्त्रोत तकरीबन खारे हो चुके थे और 497 का पानी पीने लायक नहीं बचा।
सांगोद के हालात बेहद खराब

पेयजल गुणवत्ता रिपोर्ट में जारी ब्लॉकवार आंकड़ों में सबसे ज्यादा खराब हालात सांगोद की है। बीते एक दशक में इस ब्लॉक में फ्लोराइड, नाइट्रोजन, सालिनिटी, आयरन और बेक्टेरिओलॉजिकल कंटेंट पानी के सबसे ज्यादा 833 हब्स को दूषित कर चुका है। जबकि सांगोद के 749, लाड़पुरा के 591, इटावा के 541 और खैराबाद के 426 हब्स इंडियन ड्रिंकिंग वाटर स्टेंडर्ड (आईएस 10500) की परमीशन लिमिट से कई गुना ज्यादा रसायनिक तत्व मिलने से कॉन्टैमिनेटेड हो चुके हैं और इनका पानी इंसानों की बात तो छोडि़ए पालतू पशुओं तक के लिए जहर है।
तय मानक और असर

सरकार ने बीआईएस 10500-2009 के तहत पेयजल गुणवत्ता के 32 मानक निर्धारित कर रखे हैं। जिनके मुताबिक एक लीटर पानी में घुले रसायनों की अधिकतम मात्रा 500 मिली ग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए। पानी में यदि क्लोराइड की मात्रा 250 मिलीग्राम से अधिक हो जाती है तो पाचन तंत्र पर बुरा असर पडऩे के साथ ही दिल और गुर्दे के लिए घातक साबित हो सकता है। वहीं आर्सेनिक की मात्रा 0.01 मिलीग्राम, नाइट्रेट की मात्रा 45 मिलीग्राम और फ्लोराइड की मात्रा 0.1 मिलीग्राम (अधिकतम 0.015) से अधिक नहीं होनी चाहिए। पानी में इन रसायनों की मात्रा मानक से अधिक हो जाती है तो ऐसा पानी पीने वालों के दांत नष्ट होने से लेकर हड्डियों में लाइलाज विकार पैदा होने, अपंगता की चपेट में आने के साथ-साथ बच्चे घातक बिनमिया एवं मेथेमोग्लो डिसऑर्डर के शिकार हो जाते हैं।
रसायनिक खाद हैं बर्बादी का जिम्मेदार

राजस्थान भूगर्भ जल विभाग के भूजल वैज्ञानिक डॉ. प्रवल अथैया पैदावार बढ़ाने के लिए फसलों में डाले जाने वाले नाइट्रोजन युक्त रसायनिक खाद यूरिया, सुपर फॉस्फेट, डीएपी आदि फर्टिलाइजर एवं कीटनाशकों का अधिक मात्रा में इस्तेमाल होने से इनमें मिले नाइट्रेट और फ्लोराइड तत्व पानी के साथ रिसकर भूगर्भीय जलस्त्रोतों में मिल जाते हैं। जिससे यह जल स्त्रोत दूषित होने लगते हैं। इनकी मात्रा निरंतर बढऩे से पानी पीने लायक नहीं रहता। इसके साथ ही सीवरेज एवं अपशिष्टों के निस्तारण की समुचित व्यवस्था न होना भी पानी को दूषित करने की प्रमुख वजह है।

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