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कोटा

दूसरों के दर्द को महसूस करने का नाम है रमजान

रोजा जिस्म के हर हिस्से का….आंख, कान, पैर का रोजा। इंसान बुरा न देखे, किसी का बुरा करने की दिशा में कदम नहीं बढ़ाए और किसी की निदंा न करे।

कोटाMay 24, 2019 / 08:53 pm

Anil Sharma

kota

आंख, कान, पैर का रोजा। इंसान बुरा न देखे, किसी का बुरा करने की दिशा में कदम नहीं बढ़ाए और किसी की निदंा न करे।

कोटा. रमजान का माह इबादत और बरकत वाला है। रोजेदार अन्य सभी कार्यों को छोड़कर पांच वक्त की नजाम को अहमियत देता है। सिर्फ भूख प्यास को सहन करने का नाम ही रमजान नहीं है। दूसरें के दर्द को महसूस करने का नाम रमजान है। सच में तो यह मन के शुद्धिकरण का नाम है। लाडपुरा कर्बला निवासी राजस्थान पुलिस के 90 वर्षीय रिटायर्ड सब इंस्पेक्टर गुलाब खां बताते हैं कि रोजा जिस्म के हर हिस्से का होता है। आंख का रोजा, कान का रोजा, पैर का रोजा। इसका तात्पर्य है कि इंसान बुरा न देखे, पैरों से चलकर किसी का बुरा करने की दिशा में कदम नहीं बढ़ाए किसी की निदंा बुराई न करे। गुलाम खां बताते हैं कि इस माह में किए गए नेक कार्यों का 70 गुना फल मिलता है। इसलिए नेक कार्यों को उद्देश्य बनाकर जीवन में उतारना चाहिए। अब्दुल अजीम बताते हैं कि रोजा इंसान को नेक राह पर चलते रहने का पैगाम देता है। इस माह में जितनी इबादत की जाए कम है। यह सद्भाव का माह है। इन दिनों में परिवार, समाज के लोग मिलकर रोजा खोलते हैं, जो सद्भाव व समानता का संदेश देता है।
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रमजान का तीसरा जुमा
रमजान माह के तीसरे जुमे पर अकीदतमंद मस्जिदों में पहुंचे और नमाज अदा की। टिपटा, घंटाघर, स्टेशन, विज्ञान नगर व अन्य मस्जिदों में रोजेदार से रमजान के जुमे पर नमाज अदा की। जैसे-जैसे ईद की आहट सुनाई दे रही है, वैसे-वैसे अकीदतमंदों में उत्साह नजर आ रहा है। शुक्रवार को भी कुछ एेसा ही आलम नजर आया। बच्चे, युवा, बुजुर्ग जुमे की नमाज अदा करने पहुंचे। उन्होंने नमाज अदाकर अमन, चैन व खुशहाली की दुआ के साथ अच्छी बरसात के लिए भी दुआएं की। शाम को रोजा अफ्तार के आयोजन हुए।

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