अरेंज मैरिज के लिए भी अब रिश्तेदारों से ज्यादा भरोसा मेट्रिमोनियल विज्ञापनों पर होने लगा है। शहरीकरण के साथ हिंदू परिवारों में आए सामाजिक परिवर्तन को लेकर कोटा विश्वविद्यालय की शोध छात्रा अन्नू मीणा के हालिया समाजशास्त्रीय अध्ययन में ऐसे खुलासे हुए हैं। राजकीय कला कन्या महाविद्यालय के समाजशास्त्र की विभागाध्यक्ष डॉ. राजबाला वशिष्ठ के निर्देशन में अन्नू ने पीएचडी पूरी की है।
पारिवारिक ढांचा परंपराएं जोड़ती हैं परिवार
शोध के मुताबिक 38.80 फीसदी लोग आज भी परिवार के स्वरूप को लेकर परंपराओं को प्रेरक तत्व मानते हैं। जबकि 26.80 फीसदी एकता और 6.80 फीसदी की नजर में सुरक्षा परिवार को बांधने की वजह है। एक तबका (23.60 फीसदी) इसे सामाजिक संरचना की मजबूरी भी मानता है।
सगाई-संबंध रिश्तेदारी पर भारी मेट्रिमोनियल
शादी-ब्याह के लिए नए दौर में लोग रिश्तेदारी से ज्यादा भरोसा अखबार और वेबसाइट के वैवाहिक विज्ञापनों पर करने लगे हैं। रिश्तेदारों के जरिए सिर्फ 29.20 फीसदी ही शादियां हो रही। मेट्रिमोनियल विज्ञापनों के जरिए 52 फीसदी। परिचय सम्मेलनों की स्वीकार्यता भी बढ़ी, 14 फीसदी शादी-ब्याह इनके जरिए हो रहे हैं।
हिंदू परिवारों में प्रेम-विवाह तो बढ़ रहे, लेकिन माता-पिता की रजामंदी से। युवाओं को अब भी कोर्ट मैरिज स्वीकार नहीं। शोध के मुताबिक 42 फीसदी लोग लव मैरिज के पक्ष में थे, 34.80 फीसदी परंपरागत शादियों के। कोर्ट मैरिज के लिए सिर्फ 18.40 फीसदी ने सहमति दी और ‘लिव-इन-रिलेशनशिप को अब भी जगह नहीं।
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शहरों ने तोड़े संयुक्त परिवार
संयुक्त परिवार टूटने के पीछे आमतौर ‘बंटवाराÓ वजह मानी जाती है, लेकिन शोध में खुलासा हुआ कि यह सिर्फ 12.80 फीसदी परिवारों के टूटने की वजह है, बड़ा कारण शहरीकरण है। कमाने-खाने के चक्कर में लोग शहर आते हैं, यहां जगह और पैसे की कमी परिवार टूटने की मजबूरी है। 58 फीसदी परिवार इसी वजह से टूटते हैं। अकेले रहने की सोच 18 फीसदी परिवार टूटने की वजह है। Big News: 46 डिग्री में भी ‘जिन्दा है ‘मच्छर’, स्वाइन और डेंगू ने बरपाया कहर, कोटा में 8 लोगों की मौत
महिलाओं से ज्यादा पुरुष जातिवादी
शोध में बड़ा खुलासा यह हुआ कि हिंदू परिवार की महिलाएं पुरुषों के मुकाबले जातिवाद को बिल्कुल भी तवज्जो नहीं देतीं। 67.20 फीसदी महिलाएं जातीय भेद को सिरे से खारिज कर देती हैं। सिर्फ 36.80 फीसदी पुरुष ही यह हिम्मत दिखा पाते हैं।