पत्थर व्यवसायियों का कहना है कि हाड़ौती व बिजौलिया से सेण्ड स्टोन का बहुतायात में निर्यात होता है। सेण्ड स्टोन यूरोपियन देशों में जाता है। पिछले वर्ष प्रतिदिन 300 से अधिक कंटनेर सेण्ड स्टोन का निर्यात होता था, जो अब घटकर करीब 150 कंटेनर ही रह गया है। यूरोपियन देशों में मंदी के कारण पत्थर की मांग घट गई है। कोनकोर डिपो के अलावा अन्य बंदरगाहों से सेण्ड स्टोन निर्यात किया जाता है।
पत्थर उद्यमियों का कहना है कि इस वर्ष घरेलू बाजार की भी सेंड स्टोन की मांग घट गई है। घरेलू बाजार में मांग घटने का कारण निर्माण क्षेत्र का गति नहीं पकडऩा है।
बजरी संकट के कारण निर्माण क्षेत्र मंदी की मार झेल रहा है। ाूरोपियन देशों में लगाातर
बारिश होने तथा बर्फीले देश होने के कारण अन्य पत्थर पर फिसलन हो जाती है।
जबकि हाड़ौती व बिजौलिया से निकलने वाला सेण्ड स्टोन वहां की भौगोलिक स्थिति के अनुकूल होता है। सेण्ड स्टोन में नमी और पानी को सोखने की क्षमता अधिक होती है। यह पत्थर पानी के लगातार सम्पर्क में आने के बाद भी खुरदरा ही रहता है। इस कारण फिसलन नहीं होती है। ऐसे में यूरोपीयन देशों में इसकी मांग ज्यादा है।
पार्कों व सरकारी इमारतों, स्टेशन आदि में इसका उपयोग किया जाता है। फुटपाथ पर इस पत्थर का सबसे ज्यादा उपयोग होता है। सेण्ड स्टोन निर्यात में आधे से भी ज्यादा की कमी आई है। मंदी का दौर खत्म होता नहीं दिख रहा। घरेलू बाजार नौ टन लदान के नियम की मार झेल रहा है।
उत्तम अग्रवाल, पूर्व अध्यक्ष, सेण्ड स्टोन विकास समिति
उद्योगों को मंदी के दौर से उठाने के लिए सरकार का ठोस कदम उठाने की जरूरत है। कोटा में हुए उद्यमी सम्मेलन में भी इस पर चर्चा हुई थी। लोकसभा अध्यक्ष को इस बारे में सुझाव पत्र दिया गया है।
गोविंद राम मित्तल, संस्थापक अध्यक्ष दि एसएसआई एसोसिएशन