सीताराम के पिता किसान है। सीताराम अपने गांव का पहला छात्र होगा जो डॉक्टर बनेगा। उसने नीट में 665 अंक प्राप्त किए। सीताराम के पिता बीमार रहते हैं। वे खेती से बस इतना ही कमा पाते हैं की परिवार का भरण पोषण हो जाए। परिवार बीपीएल श्रेणी में आता है। डॉक्टर ने उसके पिता को बीमारी के चलते ऑपरेशन करवाने की सलाह दी थी, लेकिन सीताराम की पढ़ाई के चलते उन्होंने अपनी बीमारी को नजर अंदाज कर दिया। वह कोटा रहकर नीट की पढ़ाई कर रहा था और सीताराम के पिता की इतनी आमदनी नहीं थी की वो सारा खर्चा एक साथ उठा पाए तो उन्होंने अपनी बीमारी और बेटे की पढ़ाई में उसकी पढ़ाई को चुना। यहां तक की पैसों की कमी के चलते उन्होंने अपनी दवाई लेना भी बंद कर दिया ताकि सीताराम कोटा रहकर अपनी तैयारी पूरी कर सके।
उसे विस्तार से पीएम मोदी ने ही बता दिया… आखिरकार एक पिता का अपने बच्चे के लिए किया गया बलिदान काम आया और बेटा नीट में टॉप-100 अपनी जगह बनाने में सफ ल हो पाया। सीताराम कहता है कि मैं एक हिंदी माध्यम का छात्र था। मैं नीट में इतना अच्छा प्रदर्शन कर पाऊंगा, यह सोचा भी नहीं था।