कोटा

खुलासा: टाइगर और इंसानों के बीच टकराव की वजह 62 प्रजातियों के वन्यजीव, कैसे, पढि़ए खबर

mukundara hills tiger reserve: टाइगर और इंसानों के बीच टकराव की वजह बन रहे हैं 62 प्रजातियों के वन्यजीव…

कोटाOct 22, 2019 / 05:38 pm

​Zuber Khan

खुलासा: टाइगर और इंसानों में टकराव की वजह 62 प्रजातियों के वन्यजीव, कैसे, पढि़ए खबर

कोटा. राजस्थान में बाघों ( Tiger ) की आबादी बढ़ाने पर तो जमकर काम हुआ, लेकिन उन्हें सुरक्षित माहौल देने के लिए बाघ अभयारण्यों में बसे गांवों को विस्थापित करने की कोई कारगर योजना नहीं बनाई गई। जब भी बाघों और इंसानों में टकराव बढ़ता है सरकारें कॉरीडोर बनाकर उनके प्राकृतिक रहवासों को बढ़ाने और अभयारण्यों में बसे गांवों के विस्थापन का राग अलापने लगती हैं, लेकिन पुनर्वास पैकेज का जिक्र छिड़ते ही बाघों की चिंता में दोहरे हो रहे जिम्मेदार लापता हो जाते हैं। (mukundara hills tiger reserve )
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आलम यह है कि तीन साल पहले विधानसभा ( Rajasthan Assembly ) में रखा गया पुनर्वास पैकेज बढ़ाने के प्रस्ताव पर अभी तक अमल नहीं हो सका। भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) देहरादून के वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ.बिलाल हबीब कहते हैं कि राजस्थान ही नहीं दुनियाभर में टाइगर कॉरीडोर बाघों का आहार खत्म होने के कारण कम हुए। बाघ 62 प्रजातियों के जानवरों का शिकार करता है। इनमें से 50 विलुप्ति के कगार पर है। नतीजतन, इनके भोजन में 81 प्रतिशत की कमी हो गई। ऐसे में बाघ आबादी वाले इलाकों का रुख करता है। उन्होंने मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के साथ साथ सरिस्का के हालात पर चिंता जताते हुए कहा कि जंगलों में ऐसी घास पनप रही हैं, जिन्हें शाकाहारी जानवर नहीं खाते।
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उधार का शिकार नहीं, कॉरीडोर बनाओ
डॉ. हबीब कहते हैं कि अगर सरकारें बाघों के प्रति गंभीर हैं तो उन्हें बाघ के भोजन और आवास का इंतजाम करना होगा। उधार के शिकार से अब काम नहीं चलने वाला। एक बाघिन को 50 वर्ग किमी का कोर एरिया चाहिए होता है, लेकिन राजस्थान में बाघों की तेजी से बढ़ती संख्या को देखते हुए किसी भी अभ्यारण्य में इतना क्षेत्र मौजूद नहीं है। इससे निपटने का एक ही तरीका है और वह है राजस्थान रॉयल टाइगर कॉरीडोर को फिर से जिंदा करना। रणथंभौर, मुकुंदरा और सरिस्का में से किसी के बीच कॉरीडोर नहीं है। इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर या इंसानों की जान लेकर चुकानी पड़ रही है।


विस्थापन जरूरी
रणथंभौर टाइगर रिजर्व के पूर्व मुख्य वन संरक्षक वाईके साहू कहते हैं कि बाघ अभयारण्यों को बचाने और कॉरीडोर के लिए ग्रामीणों का विस्थापन जरूरी है। इसमें देरी और मुश्किल हालात पैदा करेगी। पुनर्वास प्रक्रिया टालने से बाघ ही नहीं इंसान और आबादी मुसीबतों में फंसती जा रही है। 2016 में बजट घोषणा के जरिए पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पुनर्वास बजट को तर्कसंगत बनाने की घोषणा की। इसके बाद 2018 में नए सिरे से पैकेज बनाकर सरकार को सौंप भी दिया, लेकिन इसे आज तक मंजूरी नहीं मिली।
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कब तक लेकर बैठेंगे
वाईके साहू कहते हैं कि सालों तक बाघ अभयारण्य में बसे लोगों का पुनर्वास करने के लिए प्रति परिवार एक लाख रुपए दिया जाता रहा, लेकिन 2008 में इसे बढ़ाकर दस गुना यानि 10 लाख रुपए प्रति परिवार कर दिया गया, लेकिन एक दशक बाद जब राजस्थान के हालात देश के दूसरे हिस्सों से काफी अलग हो गए। यहां जिस तेजी से जमीनों की कीमतें बढ़ी हैं उसके हिसाब से 10 लाख का पैकेज नाकाफी है। इसे लेकर बैठे रहे तो मुकुंदरा ही नहीं राजस्थान के किसी भी बाघ अभयारण्य से लोगों का पुनर्वास हो ही नहीं सकता। ‘मैं तो यह पूछना चाहता हूं कि आखिर पैकेज रिवाइज क्यों न हो?Ó जिन लोगों की जमीनों की शक्ल में परिवार के पालन पोषण का साधन ले रहे हैं उन्हें पैसा क्यों नहीं मिलना चाहिए? सरकारों को इस पर आगे बढ़कर काम करना चाहिए, क्योंकि यह सोशल वेलफेयर का अहम हिस्सा है। सरकार और वन विभाग के आला अधिकारी जिस दिन इस बात को समझ जाएंगे उसी दिन राजस्थान में न सिर्फ राजस्थान रॉयल टाइगर कॉरीडोर का सपना पूरा हो जाएगा, बल्कि बाघों और इंसानों का टकराव हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।

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