कोटा

पानी के जख्म: कोई खाने को दे जाए, इसलिए दिनभर दरवाजे पर रहती है निगाहें…

वृद्धा रामधनी की निगाहें दरवाजे पर इसलिए रहती हैं कि कोई आए तो शायद खाने को दे जाए। जीवन गांव में बीत गया, किसी से मांगने में भी शर्म नहीं है।

कोटाApr 10, 2018 / 11:32 am

​Zuber Khan

कोटा . पानी की किल्लत से कोटा जिले के बंबोली गांव बर्बादी की दहलीज पर खड़ा है। यहां बेटियों की डोलियां सिर्फ इसलिए नहीं उठती क्योंकि यहां पानी नहीं है। जो जमीन थी, उसमें पिछले चार सालों से पानी नहीं है। खेती नहीं हो रही तो खाने को भी मुश्किल से मिल रहा है। मजदूरी कर जैसे-तैसे काम चला रहे हैं।
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जमीन में पानी नहीं है, इसलिए उसकी कीमत भी कौडिय़ों के भाव हो गई। बच्चे भी स्कूल छोड़ मजदूरी करने लगे हैं। धीरे-धीरे पूरा गांव वीरान होता जा रहा है। वक्त के साथ-साथ कई सरकारें बदल गई लेकिन गांवों के हालात जस के तस है। कभी नहीं सुधरे। विकास तो दूर, पीने तक को पानी नहीं है।
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चुनाव के समय जनप्रतिनिधि विकास का नारा देते इन विराने में आते हैं, भरोसा व आश्वासन और कोरा वादा कर गांववासियों की आंखों में सुनहरे सपने संजोते हैं, पर समय निकल जाता है लेकिन उनकी मुश्किलों का हल निकलता। यह दास्तां अकेले बंबोली गांव की नहीं है, जिले के कई ऐसे गांव हैं जहां पानी की बूंद-बूंद को लोग तरस रहे हैं।

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खाने की आस में दिनभर दरवाजे पर बैठी रहती है वृद्धा
बंबोली गांव की एक वृद्धा रामधनी की निगाहें दरवाजे पर इसलिए रहती हैं कि कोई आए तो शायद खाने को दे जाए। पूरा जीवन गांव में ही बीत गया तो किसी से मांगने में भी शर्म आती है। एक 47 साल का बेटा है सियाराम, उसकी भी शादी नहीं हुई। 3 बीघा जमीन है, वह बंजर पड़ी है। दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं। ऐसे कई परिवार हैं जो आर्थिक दृिष्ट से कमजोर हो चुके हैं। इनकी सुध लेने वाला गांव में कोई नहीं है।
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20 गांव की 70 हजार बीघा भूमि सूखी
कोटा जिले की ग्राम पंचायत चौमा मालियान, भाण्डाहेड़ा, रेलगांव व कुराड़ पंचायतों के करीब 20 गांव की 70 हजार बीघा भूृमि में पानी पालात में पहुंच गया है। फसल के लिए तो दूर अब पेयजल का भी संकट खड़ा हो गया है। राजस्थान पत्रिका टीम ने 80 किमी क्षेत्र का दौरा कर किसानों के हाल देखे। चार पंचायतें व 20 गांव में सैंकड़ों किसानों से बात की। हालात इतने विकट हैं कि जमीन ही नहीं अब आंखों का पानी भी सूख गया है।

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