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कोटा

ऐसा क्या हुआ कि दौडऩे वाला शहर कछुए सा रेंगने लगा

खतरे की घंटी : वायु और ध्वनि प्रदूषण में बढ़ोतरी, हादसे में मौत और घायलों का आंकड़ा बढ़ा

कोटाNov 13, 2019 / 06:16 pm

mukesh gour

ऐसा क्या हुआ कि दौडऩे वाला शहर कछुए सा रेंगने लगा

ऐसा क्या हुआ कि दौडऩे वाला शहर कछुए सा रेंगने लगा

कोटा. बदहाल ट्रैफिक के चलते कोटा की छवि धूमिल हो रही है और उसका सीधा प्रभाव पड़ रहा है शहरवासियों व उनके भविष्य पर। शहर में ट्रैफिक अटक-अटक कर चल रहा है। भारी ट्रैफिक से शहर में वायु और ध्वनि प्रदूषण तो बढ़ ही रहा है, साथ ही सड़कों पर चलने वाले वाहनों का ईंधन भी बर्बाद कर रहा है। शहर में दुर्घटनाओं, घायलों व इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा भी बढ़ रहा है। इससे शहर का विकास, औद्योगिक माहौल प्रभावित हो रहा है। ऐसे में शहर व आने वाली पीढिय़ों को भविष्य में हम क्या दे पाएंगे। इसके लिए कोटा को शैक्षणिक नगरी की तर्ज पर शानदार यातायात व्यवस्था के लिए ख्यातनाम बनाने के लिए सभी को एकजुट हो ठोस कदम उठाने होंगे। शहर में यातायात की जरूरतों और व्यवस्थाओं को लेकर पेश है पत्रिका की खास रिपोट…
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67.7 त्न ट्रैफिक एक ही सड़क पर
अनंतपुरा से लेकर स्टेशन तक एक ही सड़क पर शहर का 67.7 फीसदी ट्रैफिक चलता है। शहर की जरूरत के हिसाब से इस मार्ग का विकास काफी धीरे और नाकाफी हुआ। सरकार व प्रशासन इसके साथ समामान्तर कोई और मुख्य मार्ग विकसित ही नहीं कर सका। ऐसे में ये मार्ग लगातार बढ़ रही वाहनों की संख्या के सामने बौना साबित हो रहा है। यह मार्ग आज भी कोटा के अलावा झालावाड़ से लेकर इंदौर तक जाने वाले वाहनों व मध्यप्रदेश से झालावाड़ होकर जयपुर जाने वाले वाहनों के दबाव से जूझ रहा है। फोरलेन बनने व सड़क के चौड़ीकरण के बाद भी यहां ट्रैफिक की गति धीमी है।
मंत्री ने कहा अतिक्रमण हटाओ, किसी ने नहीं सुनी
स्वतंत्रता दिवस से पहले नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल ने पुलिस व यातायात अधिकारियों को सड़क किनारे जमे ठेलों व अतिक्रमियों को हटाकर पार्किंग व यातायात व्यवस्था सुचारू बनाने के आदेश दिए थे, लेकिन महज दो-तीन दिन की समझाइश व कुछेक ठेलों को हटाने की औपचारिकता के बाद पुलिस व यातायात पुलिस अपने पुराने ढर्रे पर लौट आए। नतीजा दुकानों का सामान सड़कों तक पसर गया। नतीजतन सड़कें सिकुड़ गई हैं, इससे बाजारों में जाम के हालात पैदा होते हैं।
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जेब और सेहत को नुकसान
बढ़ते ट्रैफिक के अलावा बेतरतीब यातायात से लगने वाले जाम, रेंगते वाहनों से ईंधन की खपत बढ़ रही है। जाम से शहर में 25 फीसदी ईंधन की खपत बढ़ गई है। इससे समय व रुपयों की बर्बादी हो रही है, वहीं प्रदूषण भी बढ़ रहा है। जाम से सड़कों पर अधिक समय तक वाहनों के रहने, पार्किंग की जगह तलाशने के चलते लगने वाले समय से शहर से वाहनों से होने वाला प्रदूषण भी बढ़ गया है। पुराने खटारा वाहन भी कोढ़ में खाज साबित हो रहे हैं।
बिगाड़ गया टाइम मैनेजमेंट
सड़कों पर लगने वाले जाम से लोगों का टाइम मैनेजमेंट बिगड़ रहा है। स्टेशन से महावीर नगर तक का सफर जो पहले 20 मिनट में पूरा होता था, अब 35 मिनट लग रहे हैं। सुबह-शाम जब वाहनों की संख्या ज्यादा हो तो यह समय और बढ़ जाता है।
फुटपाथ गायब, पार्किंग की जगह नहीं
छावनी चौपाटी और मल्टीपरपज स्कूल के बाहर लगने वाली चौपाटी पर शाम से देर रात तक जाम रहता है। दुकानें उनके आहातों से बाहर सड़कों तक पसर जाती है। बाकी जगह चौपाटी पहुंचने वालों के वाहन आ जमते हैं। और सड़क कुछ फीट की हर रह जाती है। इसके बाद यहां से गाडिय़ां रेंग-रेंग कर निकलती है। भीमगंजमंडी थाने से स्टेशन मार्ग भी अतिक्रमण के कारण ट्रैफिक से बदहाल है। कोटड़ी चौराहा, अंटाघर चौराहे पर अटक-अटक कर चलते वाहन और गुमानपुरा पार्किंग की व्यवस्था के अभाव में लोगों को परेशानी भुगतनी पड़ती है।
ट्रैफिक इतना कि डायवर्जन करना मजबूरी
एरोड्रम चौराहे पर तो सुबह-शाम इतना ट्रैफिक रहता है, कि इसे डायवर्ट करना पड़ता है। नए बस स्टैण्ड व डीसीएम की ओर से आने वाले वाहनों को चौराहे पर नहीं जाने दिया जाता। इन्हें स्लीप लेन से विज्ञाननगर की ओर एयरपोर्ट के गेट तक जाना पड़ता है। जहां से घूमकर फिर इन वाहनों को करीब दो किलोमीटर का फेरा लगाकर वापस एरोड्रम आना होता है। ऐसे में चंद सैंकण्डों में स्थान पर वाहनों को 10 से 15 मिनट का समय लग जाता है और सुबह-शाम तो इससे भी कहीं ज्यादा वक्त व ईंधन बर्बाद होता है।
शहर की छवि कर रहे धूमिल
सड़कों पर वाहनों की रेलमपेल व जाम शहर की छवि भी खराब कर रहे हैं। इस पर बेतरतीब यातायात, ओवरस्पीड व पावर बाइकर्स शहर की यातायात व्यवस्था पर बदनुमा दाग बनते जा रहे हैं। शैक्षणिक नगरी कहलाने के चलते यहां देशभर के लोग आते हैं, लेकिन यहां के बदहाल ट्रैफिक को देख वे कोटा की धूमिल छवि लेकर लौट रहे हैं।

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