अनंतपुरा से लेकर स्टेशन तक एक ही सड़क पर शहर का 67.7 फीसदी ट्रैफिक चलता है। शहर की जरूरत के हिसाब से इस मार्ग का विकास काफी धीरे और नाकाफी हुआ। सरकार व प्रशासन इसके साथ समामान्तर कोई और मुख्य मार्ग विकसित ही नहीं कर सका। ऐसे में ये मार्ग लगातार बढ़ रही वाहनों की संख्या के सामने बौना साबित हो रहा है। यह मार्ग आज भी कोटा के अलावा झालावाड़ से लेकर इंदौर तक जाने वाले वाहनों व मध्यप्रदेश से झालावाड़ होकर जयपुर जाने वाले वाहनों के दबाव से जूझ रहा है। फोरलेन बनने व सड़क के चौड़ीकरण के बाद भी यहां ट्रैफिक की गति धीमी है।
स्वतंत्रता दिवस से पहले नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल ने पुलिस व यातायात अधिकारियों को सड़क किनारे जमे ठेलों व अतिक्रमियों को हटाकर पार्किंग व यातायात व्यवस्था सुचारू बनाने के आदेश दिए थे, लेकिन महज दो-तीन दिन की समझाइश व कुछेक ठेलों को हटाने की औपचारिकता के बाद पुलिस व यातायात पुलिस अपने पुराने ढर्रे पर लौट आए। नतीजा दुकानों का सामान सड़कों तक पसर गया। नतीजतन सड़कें सिकुड़ गई हैं, इससे बाजारों में जाम के हालात पैदा होते हैं।
बढ़ते ट्रैफिक के अलावा बेतरतीब यातायात से लगने वाले जाम, रेंगते वाहनों से ईंधन की खपत बढ़ रही है। जाम से शहर में 25 फीसदी ईंधन की खपत बढ़ गई है। इससे समय व रुपयों की बर्बादी हो रही है, वहीं प्रदूषण भी बढ़ रहा है। जाम से सड़कों पर अधिक समय तक वाहनों के रहने, पार्किंग की जगह तलाशने के चलते लगने वाले समय से शहर से वाहनों से होने वाला प्रदूषण भी बढ़ गया है। पुराने खटारा वाहन भी कोढ़ में खाज साबित हो रहे हैं।
सड़कों पर लगने वाले जाम से लोगों का टाइम मैनेजमेंट बिगड़ रहा है। स्टेशन से महावीर नगर तक का सफर जो पहले 20 मिनट में पूरा होता था, अब 35 मिनट लग रहे हैं। सुबह-शाम जब वाहनों की संख्या ज्यादा हो तो यह समय और बढ़ जाता है।
छावनी चौपाटी और मल्टीपरपज स्कूल के बाहर लगने वाली चौपाटी पर शाम से देर रात तक जाम रहता है। दुकानें उनके आहातों से बाहर सड़कों तक पसर जाती है। बाकी जगह चौपाटी पहुंचने वालों के वाहन आ जमते हैं। और सड़क कुछ फीट की हर रह जाती है। इसके बाद यहां से गाडिय़ां रेंग-रेंग कर निकलती है। भीमगंजमंडी थाने से स्टेशन मार्ग भी अतिक्रमण के कारण ट्रैफिक से बदहाल है। कोटड़ी चौराहा, अंटाघर चौराहे पर अटक-अटक कर चलते वाहन और गुमानपुरा पार्किंग की व्यवस्था के अभाव में लोगों को परेशानी भुगतनी पड़ती है।
एरोड्रम चौराहे पर तो सुबह-शाम इतना ट्रैफिक रहता है, कि इसे डायवर्ट करना पड़ता है। नए बस स्टैण्ड व डीसीएम की ओर से आने वाले वाहनों को चौराहे पर नहीं जाने दिया जाता। इन्हें स्लीप लेन से विज्ञाननगर की ओर एयरपोर्ट के गेट तक जाना पड़ता है। जहां से घूमकर फिर इन वाहनों को करीब दो किलोमीटर का फेरा लगाकर वापस एरोड्रम आना होता है। ऐसे में चंद सैंकण्डों में स्थान पर वाहनों को 10 से 15 मिनट का समय लग जाता है और सुबह-शाम तो इससे भी कहीं ज्यादा वक्त व ईंधन बर्बाद होता है।
सड़कों पर वाहनों की रेलमपेल व जाम शहर की छवि भी खराब कर रहे हैं। इस पर बेतरतीब यातायात, ओवरस्पीड व पावर बाइकर्स शहर की यातायात व्यवस्था पर बदनुमा दाग बनते जा रहे हैं। शैक्षणिक नगरी कहलाने के चलते यहां देशभर के लोग आते हैं, लेकिन यहां के बदहाल ट्रैफिक को देख वे कोटा की धूमिल छवि लेकर लौट रहे हैं।