विधानसभा: भ्रष्ट अधिकारियों को कलक्टर, एसपी क्यों लगाया जाता है
विधायक भरत सिंह ने कहा, कोरोनाकाल में जब अपराधों में कमी आई तब पूरे प्रदेश में उस समय भ्रष्टाचार के मामलों में कमी नहीं आई। अकेले कोटा संभाग में सात माह में भ्रष्टाचार के 32 केस पकड़े गए।
कोटा. विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान बुधवार को कांग्रेस विधायक भरतसिंह कुंदनपुर ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस की घोषणा का मुद्दा उठाया। विधायक सिंह ने कहा, क्या यह सही है कि सरकार ने वर्ष 2019-20 में भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस की घोषणा की थी? यदि हां, तो क्या यह भी सही है कि भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त निरीक्षक को वापस नौकरी पर ले लिया है? इसका जवाब देते हुए नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल ने कहा, वर्ष 2019-20 के बजट भाषण में पैरा संख्या 180 पर राज्य सरकार ने जो घोषणा की थी, वो जीरो टॉलरेंस के बाबत थी। पुलिस निरीक्षक एवं अन्य को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा दर्ज अभियोग में आरोप प्रमाणित पाए जाने पर इनके विरुद्ध न्यायालय में 22 नवम्बर 2016 को चालान प्रस्तुत किया जा चुका है। प्रकरण न्यायालय में विचाराधीन है। पुलिस निरीक्षक को अनुशासनिक अधिकारी ने राज्य सेवा से 29 जनवरी 2020 से बर्खास्त किया गया था। इस आदेश के विरुद्ध निरीक्षक ने अपीलाधिकारी को अपील प्रस्तुत की थी, इस पर अपीलाधिकारी ने 29 जनवरी के आदेश को अपास्त किया था। अनुशासनिक अधिकारी की ओर से पुलिस निरीक्षक को राज्य सेवा में वापिस नहीं लिया है। इसअपीलादेश के विरुद्ध वर्तमान में राज्यपाल के समक्ष पुनर्विलोकन याचिका प्रस्तुत की गई है, जो विचाराधीन है। सिंह ने कहा, कोरोना काल में जब अपराधों में कमी आई, पूरे प्रदेश में उस समय भ्रष्टाचार के कैसेज में कमी नहीं आई। जिस संभाग से मंत्रीजी आप और हम आते हैं, वहां सात माह में भ्रष्टाचार के 32 केस पकड़े गए। सिंह ने कहा, सरकार की मंशा पर मुझे किसी प्रकार की शंका नहीं है, लेकिन ऐसी सरकार की क्या मजबूरी है कि जिन अधिकारियों का ट्रेक रेकॉर्ड भ्रष्ट है, उन्हें एसपी, कलक्टर और आईजी के पदों पर नियुक्त किया जाता है व पुन: भ्रष्टाचार में पकड़े जाने पर जेल में बंद करना पड़ता है। बारां, दौसा और उदयपुर में जो अधिकारी नियुक्त किए गए हैं, उनके बारे में सदन को जानकारी दें।
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