READ MORE : भरत सिंह ने आखिर सीएम गहलोत को क्यों कहा ‘ड्राइवर’ सपनों के शहर कोटा में भी कुछ लोग ऐसे जिन्होंने केवल चाय के दम पर अपनी पहचान बनाई है। इनमें से एक है बाबू टी स्टॉल के ऑनर बाबू लाल प्रजापति। बाबू ने कई बरस पहले एक छोटी सी दुकान लगाकर अपने काम की शुरुआत की थी। आज अपनी चाय में दमदार स्वाद के दम पर उन्होंने इस व्यवसाय में अपनी एक अगल पहचान स्थापित की है।
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16 तरह की चाय
बाबू टी स्टॉल अपने ग्राहकों को एक-दो नहीं पूरे 16 तरह की चाय उपल्बध कराता है। हालांकि इनकी कीमत बाजार के दूसरे चाय स्टॉल से महंगी जरूर है,लेकिन उनकी दुकान पर आने वाले ग्राहक कहते हैं, ‘चाय का स्वाद बेहतरीन है। बाबू टी-स्टाल के यहां की केसर चाय, मिक्स मसाला चाय, काजू चाय, चॉकलेट चाय, बाबू स्पेशल सुपर चाय कोचिंग स्टूडेंट्स में मशहूर है।
16 तरह की चाय
बाबू टी स्टॉल अपने ग्राहकों को एक-दो नहीं पूरे 16 तरह की चाय उपल्बध कराता है। हालांकि इनकी कीमत बाजार के दूसरे चाय स्टॉल से महंगी जरूर है,लेकिन उनकी दुकान पर आने वाले ग्राहक कहते हैं, ‘चाय का स्वाद बेहतरीन है। बाबू टी-स्टाल के यहां की केसर चाय, मिक्स मसाला चाय, काजू चाय, चॉकलेट चाय, बाबू स्पेशल सुपर चाय कोचिंग स्टूडेंट्स में मशहूर है।
2.66 अरब की चाय पी जाता है कोटा
ज्यादातार लोग नहीं जानते की चाय भी अंग्रेजों की देन है। 111 साल पहले ईस्ट इंडिया कंपनी ने चाय का स्वाद चखाने के लिए पूरे देश में चाय की पत्ती मुफ्त में बांटी थी। इसका चस्का जुबान पर ऐसा चढ़ा कि एक सदी बाद अकेले कोटा के ही लोग सालाना 2.66 अरब रुपए की चाय सुड़क जाते हैं।
अर्थशास्त्री डॉ. कपिल शर्मा के मुताबिक टी बोर्ड ऑफ इंडिया की ओर से जारी आंकड़ों पर नजर डालें तो कोटा में प्रति व्यक्ति चाय की सालाना खपत शहरी और ग्रामीण इलाकों के हिसाब से अलग-अलग है। गांव में चाय का चलन देर से आया और अब भी शहरों के मुकाबले कम है। आंकड़ों के मुताबिक कोटा के ग्रामीण इलाकों में अब भी 650 ग्राम प्रति व्यक्ति सालाना चाय की खपत होती है, जबकि शहरी इलाके में यह बढ़कर करीब 706.1 ग्राम प्रति व्यक्ति सालाना तक पहुंच जाती है। दोनों को मिलाकर देखा जाए तो कोटा में सालाना करीब 13.34 लाख किलो चाय की पत्ती खपत होती है। इसकी कीमत 25.54 करोड़ से ज्यादा बैठती है। कप के हिसाब से बात करें तो कोटा औसतन एक साल में 53.36 करोड़ कप चाय गटक जाता है। इसमें से 78 फीसदी खपत सिर्फ दूध की चाय में पडऩे वाली पत्तियों की है, जबकि 22 प्रतिशत हिस्सा ग्रीन टी, लेमन टी और कहवा आदि फ्लेवर्ड टी का है।
ज्यादातार लोग नहीं जानते की चाय भी अंग्रेजों की देन है। 111 साल पहले ईस्ट इंडिया कंपनी ने चाय का स्वाद चखाने के लिए पूरे देश में चाय की पत्ती मुफ्त में बांटी थी। इसका चस्का जुबान पर ऐसा चढ़ा कि एक सदी बाद अकेले कोटा के ही लोग सालाना 2.66 अरब रुपए की चाय सुड़क जाते हैं।
अर्थशास्त्री डॉ. कपिल शर्मा के मुताबिक टी बोर्ड ऑफ इंडिया की ओर से जारी आंकड़ों पर नजर डालें तो कोटा में प्रति व्यक्ति चाय की सालाना खपत शहरी और ग्रामीण इलाकों के हिसाब से अलग-अलग है। गांव में चाय का चलन देर से आया और अब भी शहरों के मुकाबले कम है। आंकड़ों के मुताबिक कोटा के ग्रामीण इलाकों में अब भी 650 ग्राम प्रति व्यक्ति सालाना चाय की खपत होती है, जबकि शहरी इलाके में यह बढ़कर करीब 706.1 ग्राम प्रति व्यक्ति सालाना तक पहुंच जाती है। दोनों को मिलाकर देखा जाए तो कोटा में सालाना करीब 13.34 लाख किलो चाय की पत्ती खपत होती है। इसकी कीमत 25.54 करोड़ से ज्यादा बैठती है। कप के हिसाब से बात करें तो कोटा औसतन एक साल में 53.36 करोड़ कप चाय गटक जाता है। इसमें से 78 फीसदी खपत सिर्फ दूध की चाय में पडऩे वाली पत्तियों की है, जबकि 22 प्रतिशत हिस्सा ग्रीन टी, लेमन टी और कहवा आदि फ्लेवर्ड टी का है।
रसोई में खेल रही थी मासूम, मां ने गैस चलाई और हो गया विस्फोट.. दर्दनाक मौत पत्ती से ज्यादा दूध-चीनी पर खर्च
दौर के साथ भले ही चाय पीने के तरीके और ब्रांड कितने भी बदल चुके हों, लेकिन अब भी 78 फीसदी कोटावासी दूध वाली चाय पीते हैं। यह अकेले चाय की पत्तियों से तो बनने से रही। इसके लिए दूध, चीनी, अदरक, इलाइची और गैस भी चाहिए। डॉ. शर्मा बताते हैं कि टी बोर्ड ऑफ इंडिया और विश्व खाद्य संगठन की सालाना रिपोर्ट के आधार पर चाय बनाने में पत्ती से करीब दस गुना ज्यादा खर्च बाकी सामान पर होता है। अकेले कोटा में ही इन सब पर सालाना औसत खर्च 2.41 अरब रुपए बैठता है।
दौर के साथ भले ही चाय पीने के तरीके और ब्रांड कितने भी बदल चुके हों, लेकिन अब भी 78 फीसदी कोटावासी दूध वाली चाय पीते हैं। यह अकेले चाय की पत्तियों से तो बनने से रही। इसके लिए दूध, चीनी, अदरक, इलाइची और गैस भी चाहिए। डॉ. शर्मा बताते हैं कि टी बोर्ड ऑफ इंडिया और विश्व खाद्य संगठन की सालाना रिपोर्ट के आधार पर चाय बनाने में पत्ती से करीब दस गुना ज्यादा खर्च बाकी सामान पर होता है। अकेले कोटा में ही इन सब पर सालाना औसत खर्च 2.41 अरब रुपए बैठता है।