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महिला शोधार्थियों को मिलेगी मेटरनिटी लीव

locationकोटाPublished: Jul 16, 2016 04:04:00 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

महिलाओं को अब शोधकार्य के दौरान भी मेटरनिटी लीव मिल सकेगी।

महिलाओं को अब शोधकार्य के दौरान भी मेटरनिटी लीव मिल सकेगी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने शोध उपाधि प्रदान करने के लिए नई प्रक्रिया और मानदंड (एमफिल-पीएचडी रेग्युलेशन 2016) जारी कर दिए हैं, जिसमें महिलाओं को शोध कार्य करने के दौरान कुल 240 दिन की मेटरनिटी लीव दिए जाने का प्रावधान किया गया है। इतना ही नहीं नए प्रावधानों के मुताबिक अब अंशकालिक आधार पर भी पीएचडी कराई जा सकेगी। 
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नए नियमों के अनुसार, दूरस्थ शिक्षा पद्धति के माध्यम से पीएचडी कराए जाने पर पहले की तरह ही रोक रहेगी, लेकिन बाकी सभी नियमों की पालना करते हुए पार्ट टाइम पीएचडी कराए जाने को यूजीसी ने मंजूरी दे दी है। 
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यूजीसी ने शुक्रवार को एमफिल पीएचडी रेग्युलेशन 2016 जारी कर दिया। नए नियमों के मुताबिक अब कम से कम तीन साल और ज्यादा से ज्यादा छह साल में छात्रों को पीएचडी पूरी करनी होगी। हालांकि महिलाओं और 40 फीसदी से ज्यादा विकलांगता वाले दिव्यांगों को दो साल की अतिरिक्त छूट दी जाएगी। यूजीसी ने पीएचडी विनियम 2016 में पर्यवेक्षकों की शैक्षणिक कार्यवधि की बाध्यता खत्म कर दी है। 
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नए नियमों के अनुसार, अब किसी रैफ्रिड जर्नल (संदर्भित शोधपत्र) में दो शोध पत्र प्रकाशित करा चुके असिस्टेंट और एसोसिएट प्रोफेसरों को पर्यवेक्षक बनाया जा सकेगा। जबकि प्रोफेसर के लिए पांच शोधपत्र प्रकाशित करने की बाध्यता रखी गई है।
शोधार्थियों की सीमा तय

अब विश्वविद्यालय या महाविद्यालय मनचाही संख्या में एमफिल छात्र आवंटित नहीं कर सकेंगे। नए नियमों के मुताबिक, अब एक समय में असिस्टेंट प्रोफेसर को एक एमफिल और चार पीएचडी छात्र, एसोसिएट प्रोफेसर को दो एमफिल और छह पीएचडी छात्र और प्रोफेसर तीन एमफिल और आठ पीएचडी छात्रों को ही शोधकार्य करा सकेंगे। इतना ही नहीं पीएचडी रेग्युलेशन एक्ट 2016 के मुताबिक अब सिर्फ विश्वविद्यालय के कार्यक्षेत्र में कार्यरत शिक्षकों को ही पीएचडी का पर्यवेक्षक बनाया जा सकेगा। 
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यूजीसी ने बाह्य शिक्षकों को पर्यवेक्षक बनाए जाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। नए नियमों लागू होने के बाद अब एमफिल करने वाले छात्रों को विश्वविद्यालय प्रशासन कोर्स वर्क करने से छूट दे सकता है। वहीं नेट और जेआरएफ पास छात्रों को प्रवेश परीक्षा में शामिल करने या न करने का फैसला विश्वविद्यालयों को करना होगा।
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