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दरअसल, कोटा के 115 वर्ष पुराने चिडिय़ाघर में सप्ताहभर पूर्व इन पक्षियों के जोड़े लाए गए हैं। इनके आने के बाद से ही जो चिडिय़ाघर देखने गया है, इन पक्षियों ने उन्हें मोहित किया है। चिडिय़ाघर के पर्यवेक्षक व क्षेत्रीय वन अधिकारी मुकेश नाथ के अनुसार ये दोनों तरह के पक्षी स्थानीय वासियों के लिए नए होने के कारण विशेष रूप से जिज्ञासा का विषय बन रहे हैं। लोग इनके बारे में जानकारी ले रहे हैं। इधर, विभाग के उपवन संरक्षक के अनुसार सीजेडएआई की स्वीकृति के बाद ही नई प्रजातियों के जीवों का लाया गया है। जल्द ही और भी लाए जाएंगे।
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वन्यजीव विभाग के चिकित्सक डॉ. अखिलेश पांड्ेय बताते हैं कि एमू मूल रूप से ऑस्टे्रलिया का रहने वाला पक्षी है। यह करीब पांच ये छह फीट ऊंचा होता है। यह विश्व के नहीं उडऩे वाले पक्षियों में दूसरा सबसे बड़ा पक्षी है। यह शाकाहारी व कीटाहारी पक्षी है। इसे दाल, दलिया, बाजरा, चना चूरी, चावल व हरी सब्जी खासी पसंद है। विशेषज्ञ डॉ. कृष्णेन्द्र सिंह नामा बताते हैं नर की अपेक्षा मादा बड़ी होती है। मादा को दोस्त बनाने के लिए इन्हें प्रतिद्वंद्वी नर से झगड़ा करना होता है। अपने मजबूत पैरों से गड्ढा खोदकर आशियाना बनाता है। नर एमू भूरा तो मादा धूसरित, मटमैली होती है। चोंच मजबूत व लंबी होती है।
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पेलीकंस को मछली पसंद
यह उडऩे वाली बड़ी चिडिय़ा है। खास तौर पर हिमालयी पर्वतीय क्षेत्रों में देखी जाती है। इसकी भी ऊंचाई साढ़ चार से साढ़े पांच फीट के करीब होती है। अण्डे गर्मी में देती है। नर पेलीकन पंखों को फैलाकर नृत्य करते हुए मादा को आकर्षित करता है। इसे खाने में मछलियां रास आती है। घौसले नर पेलीकन तैयार करते हैं।
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घडिय़ाल भी आया
आईयूसीएन की सूची के अनुसार घडिय़ाल लुप्त होने की कगार पर है। इसके जबड़ों पर घड़े जैसी आकृति होती है, इसलिए इसे घडिय़ाल कहा जाता है। इसकी लंबाई 3.50 से 4.50 मीटर होती है। जबड़ों में 110 नुकिले दांत होते हैं। मछलियां इन्हें खासतौर पर पसंद है। यह रेत में अंडे देते हैं। अवैध खनन से इन्हें काफी खतरा है।
सियार व सांभर जल्द आएंगे
सीजेडएआई ने जू में कुछ प्रजातियों को लाने की स्वीकृति दी है। एमू, पेलीकंस व घडिय़ाल को गत दिनों लाया गया है। जल्द ही जोधपुर से जेकाल व जयपुर से सांभर समेत अन्य वन्यजीवों के लाए जाने की योजना है। बायोलॉजिकल पार्क भी जल्द बनकर तैयार होगा, इसके लिए भी वन्यजीवों को लाने की तैयारी कर रहे हैं।
सुनील चिद्री, उप वन संरक्षक, वन्यजीव विभाग