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कुचामन शहर

कुचामन क्षेत्र में ईसबगोल की खेती का ‘शोर’

गत वर्षों में फसल के प्रति किसानों का बढ़ा रुझान, अच्छा मुनाफा व मौसम की उपयुक्तता कर रही मालामाल

कुचामन शहरNov 28, 2017 / 12:16 pm

Kamlesh Kumar Meena

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कुचामनसिटी. मौसम की उपयुक्तता और अच्छे मुनाफे के दम पर ईसबगोल की खेती ने कुचामन क्षेत्र में अपने पैर जमा लिए हैं। पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो किसानों का ईसबगोल की खेती की तरफ रुझान बढ़ गया है। हालांकि पानी की कमी इसबगोल की खेती पर खलल डाल रही है। लेकिन इसके बावजूद पिछले कुछ वर्षों से ईसबगोल किसानों को मालामाल कर रही है। जानकारी के अनुसार औषधीय गुणों से भरपूर ईसबगोल के लिए कुचामन का मौसम उपयुक्त है। जिससे कम पानी व कम उपजाऊ वाले क्षेत्रों में ईसबगोल की खेती कर मुनाफा कमाया जा रहा है। पिछले वित्तीय वर्ष में लक्ष्य से भी ज्यादा बुआई हुई। वर्ष 2016-17 में ईसबगोल की बुआई का आंकड़ा 14800 हैक्टेयर रखा गया था, लेकिन लक्ष्य से ज्यादा 16929 क्षेत्र में बुआई हुई। वर्तमान वित्तीय वर्ष में भी ईसबगोल का लक्ष्य 15 हजार हैक्टेयर रखा गया है। उल्लेखनीय है कि अच्छी उपज के लिए नवम्बर के प्रथम पखवाड़े तक साधारणत: गेहूं व जौ की बुआई से 15 दिन पहले ईसबगोल की बुआई उचित रहती है। इस वर्ष अभी तक बड़ी मात्रा में बुआई हो चुकी है। बीज के जमाव के लिए पर्याप्त नमी जरूरी होती है।
इसलिए रुझान ज्यादा
कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार ईसबगोल के पौधे में बीमारी कम लगती है। वहीं पानी भी कम चाहिए। भाव अच्छे मिलने के साथ फसल को तैयार करने में मेहनत भी कम होती है। आयुर्वेदिक दवाओं के रूप में इसकी विशेष मांग होती है। इसकी पैदावार एक बीघा में दो क्विंटल तक होती है। फसल चार-पांच माह में तैयार हो जाती है।
2005 से हुई शुरुआत
कुचामन क्षेत्र में ईसबगोल की खेती की शुरुआत वर्ष 2005 में हुई थी। इससे पहले इस फसल को कोई जानता तक नहीं था। क्षेत्र में पानी की कमी को देखते हुए किसानों ने इस फसल की तरफ रुख किया। पिछले पांच-छह सालों में ईसबगोल के रकबे में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई।
मिलता है अच्छा मुनाफा
ईसबगोल की फसल की पैदावार प्रति बीघा दो क्विंटल तक होती है। वर्तमान में ईसबगोल के भाव 9000-10000 प्रति क्विंटल है। ऐसे में एक बीघा में 15 से 20 हजार रुपए का लाभ किसान प्राप्त कर लेते हैं। हालांकि कुछ सावधानी भी बरतनी पड़ती है। क्योंकि पकाव के समय वर्षा हो जाए तो बीज झड़ जाता है तथा छिलका फूल जाता है। इससे बीज की गुणवत्ता व पैदावार दोनों पर असर पड़ता है।
भाव अच्छे मिलने व पानी की कमी के चलते कुचामन क्षेत्र की तहसीलों में किसानों का ईसबगोल की खेती की तरफ रुझान बढ़ रहा है। हालांकि मौलासर व निमोद क्षेत्र में अब फसल नहीं हो रही है। इस फसल में बीमारी भी कम लगती है।
– भंवरलाल बाजिया, सहायक निदेशक, कृषि विभाग, कुचामनसिटी

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