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अपने गांव का पहला एमबीबीएस डॉक्टर बनेगा कबाड़ी का बेटा अरविंद कुमार

locationकुशीनगरPublished: Oct 31, 2020 09:44:44 am

अभाव में कर दिया कमाल, नीट परीक्षा पास कर पिता का नाम किया रोशन
बेटा बोला मेरे पिता अब कबाड़ी नहीं डाॅक्टर के पिता के नाम से जाने जाएंगे
जानिये कुशीनगर के गरीब अरविंद कुमार की कहानी

arvind neet 2020

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

कुशीनगर. मजबूत इरादे और कुछ कर जाने का जुनून व जज्बा अगर हो तो संसाधनों की कमी और अभाव की स्थिति में भी मंजिल हासिल की जा सकती है। सफलता पाने के ऐसे ही जज्बे और जुनून की मिसाल है यूपी के कुशीनगर जिले के छोटे से गांव का अरविंद। परिवार का पेट पालने के लिये गली-गली घूमकर कबाड़ बेचने वाले भिखारी कुमार का बेटा अरविंद अब अपने गांव का पहला एमबीबीएस डाॅक्टर बनेगा। हाल ही में हुई नीट परीक्षा 2020 में अरविंद ने 620 अंक प्राप्तक किये हैं। अब अरविंद मेडिकल काॅलेज में दाखिले की तैयारी में जुटा है। उसकी उपलब्धि पर परिवार ही नहीं बल्कि पूरा गांव गर्व महसूस कर रहा है। अरविंद का सपना है कि जिस पिता को लोग अब तक कबाड़ी के रूप में जानते हैं उन्हें अब डाॅक्टर के पिता के रूप में जाना जाय।

अरविंद बेहद गरीब परिवार से आता है। उसके परिवार की आर्थिक स्थितियां बिल्कुल खराब थीं। गांव में काम नहीं था सो पांचवीं पास पिता भिखारी को गांव छोड़कर टाटानगर जमशेदपुर का रुख करना पड़ा। अरविंद की मां ललिता देवी भी पढ़ी लिखी नहीं और घर का काम करती हैं। पर मां-बाप का सपना था कि उनके बेटे पढ़ लिखकर बड़े आदमी बनें और समाज में उनका सम्मान हो। कुछ साल पहले ही बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिये अरविंद के पिता कुशीनगर आए। बेटा बड़ा आदमी बन जाए इसके लिये मां-बाप ने खूब संघर्ष किया और जहां तक हो सका उसकी मदद की। अरविंद के दिल में भी पढ़ने-लिखने का शौक और कुछ कर गुजरने का जज्बा पैदा होता गया।

अरविंद की अब तक की शिक्षा बेहद अभाव और संघर्षों से भरी रही। रोजाना आठ किलोमीटर साइकिल चलाकर वह गोरखपुर के सरकारी स्कूल में पढ़ाई के लिये जाता था। हालांकि अरविंद को 10वी कक्षा में 48 प्रतिशत जबकि 12वीं में 60 प्रतिशत अंक ही हासिल हुए। इसके बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी और डाॅक्टर बनने का सपना पूरा करने के लिये दिन रात मेहनत में जुट गया। परिजनों ने भी उसका भरपूर साथ दिया और आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद किसी तरह से उसे कोटा भेजा। कोटा में तैयारी का खर्च पूरा करने के लिये पिता ने 12 से 15 घंटे काम किया। वहां अरविंद की जी तोड़ मेहनत और गाइडेंस के चलते उसे सफलता हासिल हुई। अरविंद ने माता-पिता को उनके संघर्षों का बदला नीट में सफलता हासिल कर दिया। अरविंद ने बताया कि इस साल नवें प्रयास में उसे यह सफलता मिली है, उसने अखिल भारतीय स्तर पर 11603 रैंक हासिल किया है और अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में उसका रैंक 4,392 है। अब वह अपने गांव का पहला डाॅक्टर होगा। उसकी ख्वाहिश है कि वह एमबीबीएस की पढ़ाई करने के बाद आर्थेपेडिक सर्जन बने। अरविंद के पिता का कहना है कि उन्हें अपने बेटे पर गर्व है। उसके भाई अमित ने भी इस सफलता के लिये उसे प्रेरित किया।

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