अरविंद बेहद गरीब परिवार से आता है। उसके परिवार की आर्थिक स्थितियां बिल्कुल खराब थीं। गांव में काम नहीं था सो पांचवीं पास पिता भिखारी को गांव छोड़कर टाटानगर जमशेदपुर का रुख करना पड़ा। अरविंद की मां ललिता देवी भी पढ़ी लिखी नहीं और घर का काम करती हैं। पर मां-बाप का सपना था कि उनके बेटे पढ़ लिखकर बड़े आदमी बनें और समाज में उनका सम्मान हो। कुछ साल पहले ही बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिये अरविंद के पिता कुशीनगर आए। बेटा बड़ा आदमी बन जाए इसके लिये मां-बाप ने खूब संघर्ष किया और जहां तक हो सका उसकी मदद की। अरविंद के दिल में भी पढ़ने-लिखने का शौक और कुछ कर गुजरने का जज्बा पैदा होता गया।
अरविंद की अब तक की शिक्षा बेहद अभाव और संघर्षों से भरी रही। रोजाना आठ किलोमीटर साइकिल चलाकर वह गोरखपुर के सरकारी स्कूल में पढ़ाई के लिये जाता था। हालांकि अरविंद को 10वी कक्षा में 48 प्रतिशत जबकि 12वीं में 60 प्रतिशत अंक ही हासिल हुए। इसके बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी और डाॅक्टर बनने का सपना पूरा करने के लिये दिन रात मेहनत में जुट गया। परिजनों ने भी उसका भरपूर साथ दिया और आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद किसी तरह से उसे कोटा भेजा। कोटा में तैयारी का खर्च पूरा करने के लिये पिता ने 12 से 15 घंटे काम किया। वहां अरविंद की जी तोड़ मेहनत और गाइडेंस के चलते उसे सफलता हासिल हुई। अरविंद ने माता-पिता को उनके संघर्षों का बदला नीट में सफलता हासिल कर दिया। अरविंद ने बताया कि इस साल नवें प्रयास में उसे यह सफलता मिली है, उसने अखिल भारतीय स्तर पर 11603 रैंक हासिल किया है और अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में उसका रैंक 4,392 है। अब वह अपने गांव का पहला डाॅक्टर होगा। उसकी ख्वाहिश है कि वह एमबीबीएस की पढ़ाई करने के बाद आर्थेपेडिक सर्जन बने। अरविंद के पिता का कहना है कि उन्हें अपने बेटे पर गर्व है। उसके भाई अमित ने भी इस सफलता के लिये उसे प्रेरित किया।