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लखीमपुर खेरी

154 साल पुरानी है यूपी के इस जिले की रामलीला, यहां पर अपनाया जाता है वाराणसी का तर्ज

शारदीय नवरात्र से शुरू होकर विजयदशमी तक चलने वाली इस रामलीला को देखने के लिए भी लोग दूर-दराज से आते हैं।

लखीमपुर खेरीOct 09, 2018 / 05:17 pm

Mahendra Pratap

Ramlila Ayojan in shardiya navratri 2018

154 साल पुरानी है यूपी के इस जिले की रामलीला, शारदीय नवरात्र में होती है भव्य रामलीला

लखीमपुर. यूपी के इस जिले की रामलीला 154 साल पुरानी है। 154 साल पहले इसे ब्रिटिश कलेक्टर मि. वाकले ने शुरू कराया था। तब से हर साल ये रामलीला भव्य रूप से होती है। शारदीय नवरात्र से शुरू होकर विजयदशमी तक चलने वाली इस रामलीला को देखने के लिए भी लोग दूर-दराज से आते हैं।

मुहल्ला हांथीपुर स्थित मथुरा भवन से करीब एक किलोमीटर दूर रामलीला मैदान तक इसकी धूम रहती है। रामजन्म बाललीला, राम-विवाह, सीताहरण से लेकर रावण वध तक के रोमांचकारी दृश्य देखने के लिए शहरवासियों की भीड़ उमड़ती है। इस दौरान मेला मैदान में देश के कोने-कोने से आए दुकानदारों की दुकानों से लेकर नृत्य कला केंद्रों झूलों, जादू खेल तमाशों में भी लोग उमड़ते हैं। करीब एक माह के इस मेले में सांस्कृतिक आयोजन भी मेले का एक खास आकर्षण है। मथुरा भवन से रामलीला मैदान तक इसकी रौनक दिखाई देने लगी है।

ब्रिटिश कलेक्टर ने शुरू कराई थी रामलीला

रामलीला कराने वाले सेठ गयाप्रसाद ट्रस्ट के वर्तमान सर्वराहकार विपुल सेठ बताते हैं कि रामलीला की शुरुआत 153 साल पहले ब्रिटिश कलेक्टर मिस्टर वाकले ने कराई थी। वे वाराणसी से स्थानांतरित होकर लखीमपुर आए थे और उनकी पत्नी ने वाराणसी की रामलीला देखी थी, जो उन्हें काफी पसंद थी। इस लीला की शुरुआत मिस्टर वाकले ने पत्नी के आग्रह पर लखीमपुर में कराई, उस समय लखीमपुर में कोई ऐसा आदमी नहीं था जो इसका आयोजन अपने हाथों में ले सकता। शहर के प्रतिष्ठित सेठ परिवार से मिलकर कलेक्टर मिस्टर वाकले ने प्रस्ताव रखा तो तत्कालीन मथुरा प्रसाद सेठ ने शहर में सबसे पहले रामलीला की शुरुआत कराई।

मथुरा भवन है रामलीला का उद्गम स्थल

डेढ सौ साल से ज्यादा पुरानी रामलीला का उद्गम स्थल सेठ परिवार का निवास मथुरा भवन है, जहां से रामलीला की शुरुआत की गई। यहीं से पहली पहल रामलीला की तैयारियां शुरू की गई। आज 153 साल बाद भी यहां से ही रामलीला की तैयारी होती है। रामलीला का पहला दिन गणेश पूजन इसी मथुरा भवन में किया जाता है।

रामचरित मानस है लीला का आधार

शहर की इस रामलीला का आधार गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरित मानस है। पात्र लीला के दौरान वही वाक्य बोलेंगे जो श्रीराम चरित मानस में राम, लक्ष्मण व अन्य पात्रों द्वारा बोले गए हैं। चूंकि शहर की यह रामलीला वाराणसी की रामलीला की नकल है इसलिए भी पात्र उन्हीें वाक्यों का प्रयोग करते हैं जो रामचरित मानस में लिखे हैं।

सभी पात्र होते हैं ब्राम्हण

सेठ गया प्रसाद ट्रस्ट के सर्वराहकार, रामलीला के सूत्रधार, विपुल सेठ बताते हैं कि वाराणसी की तरह यहां की भी खासियत है कि सभी पात्र ब्राम्हण होते हैं। राम से लेकर रावण पक्ष तक के सभी पात्र ब्राम्हण वर्ग से ही होते हैं।

लाल किताब से कराई जाती है लीला

विपुल सेठ बताते हैं कि रामलीला में किस लीला को कब करना है उसके पात्र, प्रयाेग होने वाली सामग्री, ये सभी चीजें लाल किताब में लिखी हैं, चूंकि यह लाल पन्नों पर लिखी गई इसलिए इसे लाल किताब कहते हैं।

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