जिसके लिए मनुष्य को सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र की आवश्यकता होती है। दुनिया भले ही समाप्त हो सकती है मगर मनुष्य का यदि सम्यक दर्शन जिंदा है तो वह निश्चित ही मोक्ष को प्राप्त होता है। अगर मनुष्य को भगवान का सम्यक दर्शन अर्थात सच्चा दर्शन प्राप्त है तो वह निश्चित ही सम्यक ज्ञान अर्थात सच्चे ज्ञान की तरफ अपने आप ही मुड़ जाता है और इन दोनों की प्राप्त होती है उसका चरित्र सम्यक चारित्र बन जाता है। वह सभी को एक ही नजर से देखता है। सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र की प्राप्त होते ही मनुष्य के अंदर काम क्रोध लोभ मोह माया इत्यादि अपने आप ही समाप्त हो जाते हैं और वह रत्नत्रय धारण कर लेता है। क्योकि मनुष्य के जीवन में सम्यक म्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र की आवश्यकता होती है।