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ललितपुर

टीबी हॉस्पिटल बना सरकारी राजस्व लूटने का हब, हुआ बड़े घोटाले का खुलासा

पैसे हड़पने की आड़ में कागजो में भेजी जा रही गलत रिपोर्ट

ललितपुरApr 22, 2018 / 04:02 pm

Ruchi Sharma

lalitpur
ललितपुर. जहां एक और केंद्र और राज्य सरकार खतनाक जानलेवा टीबी की बीमारी से देश और प्रदेश को मुक्ति दिलाने के लिए लगातार अरबों रुपए पानी की तरह बहा रही है। सरकारें लगातार बड़े बड़े होर्डिंग विज्ञापन आदि करवा कर लोगों को जागरूक करने का काम कर रही है, जिससे हमारा देश इस खतरनाक और जानलेवा बीमारी टीबी से मुक्त हो सके। मगर दूसरी ओर उसी सरकार के अधीनस्थ अधिकारी और कर्मचारियों की घोर लापरवाही की वजह से यह जानलेवा खतरनाक टीबी की बीमारी कम होने का नाम नहीं ले रही है । बल्कि मरीजों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है अधिकारी और कर्मचारियों की लापरवाही की वजह से यह बीमारी लगातार बढ़ती जा रही है।

मामला जनपद ललितपुर का है, जहां पर स्थित जिला क्षय नियंत्रण केंद्र के अंतर्गत 7 ट्रीटमेंट यूनिट तथा 11 बलगम परीक्षण संचालित है। इसके बाबजूद टीबी की बीमारी कम होने का नाम नहीं ले रही है। जांच केंद्रों पर बलगम जांचोपरांत टीबी के रोगी प्रतिमाह पॉजिटिव निकल रहे हैं। लेकिन पॉजिटिव मरीजों को सुपर विजन स्टाफ द्वारा नियमित दवाई न खिलाये जाने से पॉजिटिव टीबी मरीजों का रेशियो (संख्या) लगातार बढ़ता चला जा रहा है । जबकि इसके लिए गांव गांव में डॉट्स प्रोवाइडरों की नियुक्ति सरकार द्वारा की गई है जो मरीज तक पहुंचकर उसको अपने हाथों से दवाई खिलाने के काम करते है मगर गांव गांव में फैले डॉट्स प्रोवाइडर द्वारा मरीजों को घर के पास बने डॉट्स सेन्टर पर दवा नहीं खिलायी जा रही है। जिससे मरीजों का औसत दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। इसके बादजूद अधिकारियों की मिली भगत से सम्बंधित कर्मचारी शासन को भेजी जा रही रिपोर्टों में मरीजों को क्योर दिखाया जा रहा है।

जिला मुख्यालय पर जो भी जिला क्षय रोग केंद्र खुला हुआ है उसमें जनपद के सभी डॉट सेंटरों से एकत्रित कर रिपोर्ट जैसे कि आशा ट्रीटमेंट कार्ड सुपरवाइजर का टीबी रजिस्टर्ड एवं पैथोलॉजी का बलगम जांच रजिस्टर यह तीनों एक साथ मिलाकर ट्रैंगुलेशन की प्रक्रिया अपनायी जाती है। जिसमें मरीज का रजिस्टर्ड नंबर तीनों प्रपत्रों पर एक समान और ट्रीटमेंट कार्ड का मिलान किया जाता है। यह प्रक्रिया भी लगभग 7 सालों से नहीं अपनाई गई जिससे विभागीय कर्मचारियों की कार्यप्रणाली पर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है। टीबी के मरीजों के कार्ड पर टीबी नंबर भी नहीं लिखा जाता।
रश्मि खरे जो सरकारी दस्तावेज के अनुसार एक डॉट्स प्रोवाइडर मानी गई है। मगर वह खुद कह रही हैं कि हमने कभी भी आशा का वर्क या डॉट्स प्रोवाइडर का वर्क नहीं किया लेकिन उनके खाते में लगातार डॉट्स प्रोवाडर का पैसे भेजा गया है। इस प्रकार डॉट्स प्रोवाइडर के माध्यम से विभागीय कर्मचारी पैसे लूटने का कार्य कर रहे हैं।
डीपीसी के बिना साइन के ही डॉट्स प्रोवाइडर के खाते में पैसे डाले जा रहे है जबकि डीपीसी को प्रत्येक पटल पर निरीक्षण करने आवश्यक होते है लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है। डब्लूएचओ के द्वारा जो अधिकारी बनाये गए आरएनटीसीपी है वह भी शासन को सही रिपोर्ट नहीं भेज रहे है बल्कि झूठी रिपोर्ट शासन को भेजकर जनताके साथ धोखाधड़ी कर रहे है। उनकी भी कार्य प्रणाली पर सवालिया निशान है ।
इस बारे में जब हमने जखौरा डॉट सेंटर पर तैनात एसटीएस नीलेश सिंह से बात कि तो उन्होंने अपनी कमी छुपाते हुए कह रहे हैं कि टीबी रजिस्टर में आशा को दवा देने का मतलब दवा रिसीविंग के लिए कोई कालम नहीं है एवं पुराना रिकॉर्ड पूछने पर कहते हैं कि हमने जॉइनिंग उस समय नहीं की थी। मरीज के मर जाने के बाद जो दवाएं बचती हैं। उसको वापस लेने का कोई भी लेखा जोखा इनके पास नहीं है क्योंकि उन दवाओं को नई पैकिंग में किसी प्राइवेट डाक्टर या मेडिकल स्टोर पर दे दी जाती है।
मरीजों को रिपोर्ट में क्योर दिखाने के लिए विभागीय कर्मचारी बची हुई दवाओं को प्रपत्रों में नहीं लिखते बाकी दवाओं को जला देते हैं या फिर प्राइवेट डॉक्टरों को बेच देते हैं या फिर टॉयलेट में छुपा कर रख देते हैं। लैब रजिस्टर में जनवरी 2017 में 34 मरीज पॉजिटिव पाए गए जबकि जांच हेतु 94 मरीज थे दो माह बाद मार्च 2017 में फॉलोअप के बाद फिर 34 मरीजों की जांच होनी थी लेकिन केवल 7 मरीज की जांच की गई। यह लाइव रजिस्टर में देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रत्येक माह की जांच की संख्या में प्रत्येक 2 माह बाद मरीजों का फॉलोअप बढ़ना चाहिए जैसे जनवरी में 34 पॉजिटिव दो माह बाद मार्च में केवल 7 मरीजों की जांच दर्शाई गई जबकि 34 मरीज एवं एवं मार्च के माह के 26 मरीजों में भी केवल 7 मरीजों का फॉलोअप जांच की गई । इस प्रकार टीबी से ग्रसित मरीजों को क्योर दिखाकर पैसा लूटने का कार्य बड़े स्तर पर किया जा रहा है ।

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