ललितपुर. एक ओर जहां पर्यावरण की दशा सुधारने में सरकारें लगी हुई हैं तो वहीं दूसरी ओर कुछ दबंग प्रवत्ति के लोग उस पर्यावरण को असंतुलित कर उस भूमि पर खेती कर अपनी जेब भरने में लगे हुए हैं। पर्यावरण को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से वन विभाग लाखों की संख्या में बृक्षारोपण कर रहा है, लेकिन दबंगो द्वारा वृक्षारोपण को नष्ट कर खेती की जा रही है।
चौकाने वाली बात ये ही कि वन विभाग जानकारी होने के बाद भी सोया हुआ है। लाखों रुपए की परियोजनाओं को नष्ट कर वन विभाग की भूमि पर गांव के ही कुछ दबंग लोग पिछले कई वर्षों से खेती कर अपनी जेबें भरने में लगे हुए है, जिसकी जानकारी वन विभाग को भी है, मगर वह उन दबंगों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करना चाहता।
ताजा मामला जनपद बुढ़बार क्षेत्र के फ़ौजपुरा का है जहां वन विभाग की भूमि पर दबंगों द्वारा खुलेआम खेती की जा रही है। वन विभाग का यह रकबा लगभग 90 एकड़ जमीन का है जिस पर 2005 में लाखों रुपए खर्च करके वन विभाग ने वृक्षारोपण किया गया था, लेकिन दबंगों द्वारा इसे नष्ट कर दिया गया और आज तक वहां खेती की जा रही है। बताया गया कि 2014 में भी यहां वृक्षारोपण के लिए गड्ढे कराए गए थे एवं खाद भी डाल दिया गया था, उसके बावजूद फिर वहां वृक्षारोपण नहीं हो सका और दबंगों द्वारा खेती होती रही। दबंगों का इतना आतंक है कि वहां उनके विरोध में कोई भी बोलने वाला नहीं है। स्थानीय लोगों ने बताया कि उक्त जमीन को लेकर पहले कई विवाद हो चुके हैं और इन विवादों के चलते कई बार यहां पर गोलियां भी चली हैं और आज भी इस जमीन को लेकर गांव में विवाद जारी है। मगर वन विभाग द्वारा इस पर अभी तक कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई गई।
पिछले कई महीनों से वन विभाग दावा कर रहा है कि वह अपनी भूमि को अतिक्रमण मुक्त करने के लिए लगातार अभियान चला रहा है, जिसका जीता जागता सबूत अभी कुछ ही दिनों पहले वन विभाग ने सहरिया जनजाति के लोगों को वन विभाग की जमीन पर बनाए हुए घरोंदों को तोड़ कर दिया था। उन्हें घर से बेघर कर दिया, यहां तक कि जेसीबी मशीन चलवाकर उनके घर को तुड़वा दिया और उन्हें सामान उठाने तक का मौका नहीं दिया।
इस मामले में वन विभाग के आला अधिकारियों का कहना यह था कि उन्हें पहले नोटिस दिए गए थे, उसके बाद यह कार्रवाई अमल में लाई गई, मगर सवाल यह है कि क्या गरीब सहरिया जनजाति के लोगों पर ही यह कार्यवाही अमल में लाई जाएगी।दबंग लोगों के खिलाफ कोई कार्यवाही क्यों नहीं की जाती, जबकि वन अधिनियम सहरिया जनजाति लोगों को रहने का अधिकार प्रदान करता है।
जब वन विभाग के अधिकारी से इस बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि इस मामले की हमें जानकारी तो है, लेकिन विवाद होने के बाद वहां अपना टारगेट दूसरी जगह वृक्षारोपण कर पूरा कर दिया था, लेकिन सवाल यह उठता है कि फिर उन लोगों पर कार्रवाई अभी तक क्यों नहीं की गई जो आज भी वन भूमि पर कब्जा किए हुए है। क्या विभाग की सरकारी जमीन को अधिकारियों की उदासीनता के चलते यूं ही छोड़ दिया जाएगा? या फिर उस पर कार्यवाही अमल में लाई जाएगी? दोनों ही मामले एक जैसी है मगर दोनों ही मामलों में वन विभाग ने अलग-अलग भूमिका निभाई है। एक तरफ सहरिया जनजाति के लोगों पर कार्यवाही करने घर से बेघर कर दिया तो दूसरी तरफ वन विभाग की जमीन पर दबंग लोग पेड़ पौधों को काट कर फेंक देते हैं और वहां पर लगातार खेती कर रही है। मगर उन पर आज तक कोई कार्यवाही क्यों नहीं की गई।