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ललितपुर

Ranchhod Shri Krishna : रणछोड़ क्यों कहलाए कर्मयोगी श्रीकृष्ण? ललितपुर के जंगलों में छिपा है इसका रहस्य

– ललितपुर के जाखलान थाना क्षेत्र में है 5 हजार वर्ष पुराना रणछोड़ धाम मंदिर- राक्षस कालयवन के वध से जुड़ा है यह स्थान, मुचकुंद की गुफाओं में निवास करते थे देवता- बेतवा नदी (वेत्रवती नदी) किनारे हर बरस लगता है मेला, दूर-दूर से लीलाधर श्रीकृष्ण के दर्शन करने आते हैं श्रद्धालु

ललितपुरAug 13, 2020 / 05:13 pm

Hariom Dwivedi

Ranchhod Shri Krishna : रणछोड़ क्यों कहलाए कर्मयोगी श्रीकृष्ण? ललितपुर के जंगलों में छिपा है इसका रहस्य

श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कन्द के 50, 51, 52 अध्याय में रणछोड़ धाम मंदिर का उल्लेख है

सुनील जैन
ललितपुर. कर्मयोगी भगवान श्री कृष्ण रणछोड़ क्यों कहलाए? ललितपुर जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश की सीमा का अहसास कराने वाली बेतवा नदी के किनारे स्थित जंगलों में इसका रहस्य छुपा है। थाना जाखलौन के धोर्रा क्षेत्र के जंगलों के बीचो-बीच रणछोड़ धाम मंदिर और मुचकुंद गुफाएं हैं। देवराज इन्द्र और देवता कभी-कभी यहां निवास किया करते थे। श्रीमदभागवत महापुराण के दशम स्कन्द के 50, 51, 52 अध्याय में इनका उल्लेख है। बेतवा नदी (वेत्रवती नदी) के तट पर लगभग 5 हजार वर्ष पुराना भगवान रणछोड़ का मंदिर है। इसे राजा मुचकुंद बनवाया था। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य मूर्ति है। भगवान रणछोड़ के दर्शन के लिए बेतवा नदी के तट पर प्रतिवर्ष मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर यहां भगवान के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। तो चलिए जानते हैं विंध्य की पहाड़ियों में ऐसा क्या हुआ कि कर्मयोगी कृष्ण रणछोड़ बन गए।
श्रीमदभागवत महापुराण में उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में एक समय ऐसा भी आया था जब उन्होंने अपने शत्रु से मुकाबला न करके मैदान छोड़ना ही उचित समझा। ये प्रसंग तब का है, जब महाबली मगधराज जरासंध ने कृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा था। जरासंध ने कृष्ण के साथ युद्ध करने के लिए अपने साथ कालयवन नाम के राजा को भी मना लिया था। कालयवन को भगवान शंकर से वरदान मिला था कि न तो चंद्रवंशी और न ही सूर्यवंशी उसका कभी कुछ बिगाड़ पाएंगे। उसे न तो कोई हथियार खरोंच सकता है और न ही कोई उसे अपने बल से हरा सकता है। ऐसे में उसे मारना बेहद मुश्किल था। जरासंध के कहने पर कालयवन ने बिना किसी शत्रुता के मथुरा पर आक्रमण कर दिया। लीलाधर श्री कृष्ण को उसके वरदान के बारे में पता था। उन्हें पता था कि कालयवन को युद्ध में नहीं हराया जा सकता। इसलिए वह उस राक्षस की ललकार सुनकर रणभूमि छोड़कर भाग निकले। कालयवन भी पीछे-पीछे दौड़ा। भागते भागते वह जनपद ललितपुर क्षेत्र में स्थित बेतवा नदी के किनारे आ गए थे। यहां वह एक गुफा में छिप गये, जहां राक्षसों से युद्ध करके राजा मुचकुंद त्रेतायुग से ऋषि के रूप में सोए हुए थे।
राजा मुचकुंद को मिला था यह वरदान
राजा मुचुकंद को देवराज इंद्र ने वरदान दिया था कि जो भी इंसान तुम्हें नींद से जगाएगा वह जलकर खाक हो जाएगा। ऐसे में भगवान कृष्ण कालयवन को अपने पीछे भगाते-भगाते उस गुफा तक ले आए। गुफा में भगवान कृष्ण ने राजा मुचुकंद पर अपना पीतांबर डाल दिया और छिप कर बैठ गए। कालयवन ने उन्हें कृष्ण समझकर जब लात मारकर जगाया तब ऋषि के रूप में सोए राजा मुचुकंद के जागते ही कालयवन जलकर खाक हो गया।

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