इसके अलावा सहरी के बाद घर की रसोई इफ्तार से कुछ समय पहले ही खुलती है। जो रोजे नहीं रखते उसे घर में शर्मिंदगी के साथ एकांत में भोजन करना पड़ता है। उसके लिए इस पूरे महीने गर्म खाने की सुविधा नहीं होती।शहर के काफला बाजार, छावनी, बड़ा कुआं तथा पुरानी टोंक स्थित होटलों में रविवार से पर्दे लगा दिए गए।
ये परम्परा शहर में नवाबी रियासत से चली आ रही है। उन दिनों भी होटल तथा खाने की दुकानों पर पर्दे लगा दिए जाते थे। वहीं इफ्तार तथा खाद्य सामग्री की दुकानें दोपहर बाद सजती थी। ये दुकानें देर रात चलती थी। इसके बाद सुबह तीन बजे ही बाजार खुल जाया करते थे।
आज भी काफला बाजार देर रात तक चलता है। परचून, दूध समेत अन्य खाद्य सामग्री की दुकानें रविवार को भी सुबह 3 बजे खुल गई। हालांकि सहरी की तैयारी एक दिन पहले ही कर ली जाती है, लेकिन कई बार कुछ सामान रह जाता है। ऐसे में दुकानें जल्द ही खुल जाती है।