1 रुपए की लड़ाई में बर्बाद हुई जेट एयरवेज
जेट एयरवेज की बर्बादी की कहानी कुछ इस तरह शुरू हुई। दरअसल, जेट एयरवेज अपनी प्रतिद्वंदी कंपनियों के मुकाबले अपनी ईधन लागत को छोड़कर लगभर अपनी हर सुविधा पर 1 रुपए ज्यादा खर्च करती है। 1 रुपए का यहीं अंतर कंपनी को घाटे में ले जाता चला गया और कंपनी इस बात को समझ नहीं पाई।
कंपनी को झेलना पड़ा नुकसान
2015 के खत्म होते-होते कंपनी फायदे में चल रही थी। दूसरी एयलाइन जैसे इंडिगो के मुकाबले कंपनी को तकरीबन हर सीट प्रति किलोमीटर 50 पैसे ज्यादा का फायदा हो रहा था। फिर उसी समय इंडिगो ने जेट एयरवेज को पछाड़ने का प्लान बनाया और कंपनी इसमे कामयाबा भी रही। इंडिगों के मालिकाना हक वाली कंपनी इंटरग्लोब एविएशन ने इंडिगो का ऑपरेशन लगभग 2.5 गुना तक चेज कर दिया। इतना ही नहीं कंपनी ने अपने टिकट भी सस्ते कर दिए। इंडिगों के इस कदम के कारण कंपनी को 2016 के पहले नौ महीनों तक रेवेन्यू में प्रति किलोमीटर 90 पैसे का नुकसान झेलना पड़ा। उस समय जेट एयरवेज को नुकासान से बचने और कंपनी को फायदे में लाने का अच्छा मौका था। लेकिन जेट एयरवेज इस बात को समझ नहीं पाई।
ऐसा दी इंडिगो ने मात
उस समय अगर जेट एयरवेज अपने टिकट 1 रुपए तक सस्ता कर देती, तो उसे इंडिगो से मात नहीं खानी पड़ती। शायद कंपनी को इतना नुकसान भी नहीं झेलना पड़ता। लेकिन, जेट एयरवेज ऐसा नहीं कर पाई क्योंकि उस समय भी कंपनी नुकसान में चल रही थी और कर्ज में थी। इसके बावजूद भी जेट एयरवेज ने 90 पैसे की जगह हर सीट पर 30 पैसे प्रति किलोमीटर की दर से नुकसान उठाने का साहसिक फैसला किया। यानी, 50 पैसे का हो रहा मुनाफा और 30 पैसे का अतिरिक्त घाटा मिलाकर उसके रेवेन्यू में हर सीट पर प्रति किलोमीटर कुल 80 पैसे की दर से नुकसान होने लगा। कंपनी का यहीं कदम उसके लिए गलत साबित हुआ और कंपनी को भारी-भरकम नुकसान झेलना पड़ा।