कहां हुई सबसे बड़ी चूक इंडस्ट्री के जानकारों का मानना है कि साल 2000 के समय कंपनी लीडरशिप पोजिशन में थी। लेकिन विस्तार की योजनाओं पर सही रणनीति नहीं बना पाने के कारण कपंनी को कर्ज लेकर प्रोजेक्ट्स पूरे करने पड़े। यही नहीं लीडरशिप पोजिशन को मेंनटेंन करने के लिए कंपनी के कर्ज का जाल लगातार बढ़ता चला गया।
जियो ने पूरी की रही सही कसर एक तो कंपनी पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा था, वहीं दूसरी ओर जियो के कदम रखते ही रही सही कसर भी पूरी हो गई। जियो के आने के बाद प्राइसिंग वार शुरू हुआ, कैश न होने से आर-कॉम इस प्रतियोगिता में टिकी नहीं रह पाई। इसी वजह से वह दूसरी बड़ी कंपनियों से पीछे होती गई। आज वह सब्सक्राइबर्स के मामले में टॉप 5 में शामिल नहीं है। लायंस जियो के आने के बाद से टेलिकॉम इंडस्ट्री में जो डाटा वार चला, उसमें आर-कॉम का टिकना मुश्किल होता गया। जियो, एयरटेल और आइडिया व वोडाफोन जैसी कंपनियां ने अपना कस्टमर बेस बनाए रखने के लिए खर्च बढ़ा दिया, जिससे उनका कस्टमर बेस अभी भी बचा हुआ है। वहीं आर-कॉम इस खेल में पीछे हो गई। उसके प्राइम और एवरेज कस्टमर सभी उससे दूर होते गए। आपको आर कॉम के बुरे दौर का अंदाजा इसी से लग जाएगा कि साल 2010 में कंपनी पर कर्ज केवल 25 हजार करोड़ का ही था, जो अब 45000 करोड़ पहुंच चुका है।