लखनऊ

अखिलेश के लिए आसान नहीं है इन चुनौतियों से पार पाना, कई और नेता छोड़ सकते हैं समाजवादी पार्टी, मायावती भी बढ़ा रहीं टेंशन

– विपक्ष की रणनीति और ‘अपनों’ की नाराजगी Akhilesh Yadav के लिए बनी सिरदर्द- Samajwadi Party से टूटतेे नेता बढ़ा रहे अखिलेश यादव की मुश्किलें- सपा को कमजोर करने की रणनीति बना रही BJP और BSP

लखनऊAug 10, 2019 / 03:37 pm

Hariom Dwivedi

अखिलेश के लिए आसान नहीं है इन चुनौतियों से पार पाना, कई और नेता छोड़ सकते हैं समाजवादी पार्टी, मायावती भी बढ़ा रहीं टेंशन

लखनऊ. लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Chunav 2019) के बाद से समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के लिए कुछ भी आसान नहीं है। अब तक समाजवादी पार्टी के तीन राज्यसभा सांसद इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल हो चुके हैं। कुछ और सपा नेताओं के बीजेपी में शामिल होने की चर्चा है। विपक्षी दलों की आक्रामक रणनीति और एक-एक कर नेताओं का समाजवादी पार्टी से मोहभंग होना पार्टी के लिए चिंता का सबब बन गया है। अखिलेश यादव के सामने पार्टी से छिटकते वोट बैंक को संजोने के साथ-साथ अपनों को दूर जाने से रोकने की कड़ी चुनौती है।
मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) और अखिलेश यादव के करीबी माने जाने वाले पूर्व राज्यसभा सांसद संजय सेठ (Sanjay Seth) और सुरेंद्र सिंह नागर (Surendra Singh Nagar) शनिवार को भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गये। बीते सोमवार को दोनों नेताओं ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। शनिवार को उन्होंने बीजेपी की सदस्यता ले ली। इनसे पहले नीरज शेखर (Neeraj Shekhar) ने उच्च सदन की सदस्यता से इस्तीफा देते हुए भाजपा की सदस्यता ले ली थी। बीजेपी ने नीरज शेखर को बीजेपी से राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया है। सूत्रों की मानें तो संजय सेठ और सुरेंद्र सिंह नागर को भी भाजपा बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है।
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…और सपा से दूर होते चले गये दिग्गगज
समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद से अखिलेश यादव के लिये कुछ भी सही नहीं रहा है। अब तक शिवपाल यादव (Shivpal Yadav), अमर सिंह (Amar Singh), रघुराज प्रताप सिंह (Raja Bhaiya), नरेश अग्रवाल (Naresh Agarwal) सहित बड़ी संख्या में दिग्गज सपा नेताओं ने या तो अपना दल बना लिया या फिर विपक्षी दल में शामिल हो गये। इसके अलावा पूर्वांचल के कद्दावर क्षत्रिय नेता और एमएलसी यशवंत सिंह भी कभी मुलायम के बहुत करीबी हुआ करते थे। लेकिन, आज इन सभी ने अखिलेश से दूरी बना ली है। मुलायम के विश्वस्त साथी भगवती सिंह भी अब बूढ़े हो चुके हैं। इन्हें भी अखिलेश पसंद नहीं। ऐसे में सपा में क्षत्रिय नेता अब न के बराबर रह गए हैं।
मायावती बढ़ा रहीं सपा की टेंशन
विधानसभा चुनाव (UP Vidhansabha Chunav 2017) और निकाय चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को आशातीत सफलता नहीं मिली। मायावती (Mayawati) ने भी अखिलेश को ‘कमजोर’ बताते हुए न केवल उनसे गठबंधन तोड़ लिया, बल्कि सपा के वोट बैंक को हथियाने की रणनीति पर पर काम भी शुरू कर दिया है। अल्पसंख्यकों के साथ ही सपा का यादव वोट बैंक भी मौजूदा वक्त में डगमगाता दिख रहा है। यादव बिरादरी के अन्य दलों में गए कई पुराने नेता भी सपा में वापसी के बजाय बसपा को ही पसंद कर रहे हैं। बीते दिनों मायावती ने जौनपुर से सांसद श्याम सिंह यादव (Shyam Singh Yadav) को संसदीय दल का नेता बनाकर यादव वोट बैंक पर निशाना बनाया है। मुनकाद अली को बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर मायावती ने स्पष्ट संकेत दे दिये हैं कि उनकी नजर सपा के परम्परागत वोट बैंक पर है।
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मुलायम की तरह ‘चतुर’ खिलाड़ी नहीं हैं अखिलेश
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) की तरह राजनीति के चतुर खिलाड़ी नहीं हैं। उन्हेंं जमीनी हकीकत पता नहीं होती और वह सलाहकारों से घिरे रहते हैं। इसीलिए उनके पास सटीक सूचनाएं नहीं पहुंच पातीं। मुलायम जिस तरह से पार्टी (Samajwadi Party) कार्यकर्ताओं को सम्मान देते थे, वह भाव भी अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) में दिखता। दूसरे अखिलेश की उम्र भी अनुभवी नेताओं को जोड़े रखने में आड़े आ रही है। पुराने और खांटी नेता अखिलेश घुलमिल नहीं पाते। वह अपनी बात सहजता से उनके सामने नहीं रख पाते। यही वजह है कि कार्यकर्ता और कद्दावर नेता उनसे दूरी बना रहे हैं। सबसे बड़ी बात है कि सत्ता का मोह भी संस्कार की राजनीति पर भारी है। सत्ता पक्ष से मिलने वाली सुख-सुविधाओं की वजह से भी बड़े नेता सपा का दामन छोड़ रहे हैं।
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