पहली दफा बहुजन समाज पार्टी भी उपचुनाव लड़ रही है। बसपा सुप्रीमो मायावती अब तक उपचुनावों में यकीन नहीं करती थीं। लेकिन, इस बार बसपा ने सभी 11 सीटों पर अपने मजबूत उम्मीदवार उतारे हैं। हालांकि उन्होंने अब तक अपने किसी भी प्रत्याशी के पक्ष में चुनावी सभा को संबोधित नहीं किया। बसपा के जोनल प्रभारियों को चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गयी है। लेकिन, बसपा को उम्मीद है वह कुछ करिश्मा कर दिखाएगी।
पूरी तरह से यूपी की बागडोर संभालने के बाद प्रियंका गांधी के नेतृत्व में पहली बार कांग्रेस भी सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है। मायावती की ही तरह प्रियंका,राहुल और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी उपचुनाव को अपने मातहत कार्यकर्ताओं के भरोसे छोड़ दिया है। ऐसे समय में जब प्रत्याशी कांग्रेस की जमीन बचाने के लिए संघर्षरत हैं, प्रियंका जिलाध्यक्षों के चुनाव में व्यस्त हैं। जाहिर है हार-जीत का ठीकरा नवनियुक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के माथे ही फूटेगा।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव आमतौर पर उपचुनावों में प्रचार के लिए नहीं निकलते लेकिन, रामपुर में शनिवार को उनकी पहली और आखिरी चुनावी सभा होगी। यह सीट सपा के कब्जे में थी। रामपुर आजम का गढ़ है। नौ बार वे यहां से विधायक थे। इस बार भी सीट बचाने की कसम खाए हैं। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद सपा की यहां से उम्मीद कायम है। शायद यही वजह है कि अखिलेश ने प्रचार के लिए यह सीट चुनी है जहां अनुकूल नतीजे आ सकते हैं।
रामपुरी चाकू देखकर भले ही लोगों की सिसकियां निकल आती हों लेकिन, यहां चुनावी जनसभाओं में इन दिनों आंसुओं का सैलाब उमड़ रहा है। आजम की भावुक अपील से चुनावी फिजां आसुंओं से सराबोर हो जाती है। वे अपनी पत्नी और सपा प्रत्याशी तजीन फातिमा के लिए रो-रोकर वोट मांग रहे हैं। आजम की चिरप्रतिद्वंदी भाजपा नेता और अभिनेत्री जयाप्रदा इसे ड्रामा करार दे रही हैं। वे कहती हैं आजम को औरत के आंसुओं की सजा मिल रही है। रामपुर की ही तरह अंबेडकरनगर की जलालपुर सीट पर भी भाजपा को कड़ी चुनौती मिल रही है। करीब दो दशक से भाजपा यहां कभी जीत दर्ज नहीं कर सकी है। सपा और बसपा में कौन सबसे ज्यादा बलशाली है इसका निर्णय भी यहीं से होना है। अब तक का राजनीतिक इतिहास तो यही रहा है कि उपचुनावों में सत्ताधारी दल ही बाजी मारता रहा है। भाजपा सभी सीटें जीतती तो ताज योगी के सिर ताज सजेगा। एक भी सीट गंवाई तो कांटों का हार भी उन्हें ही पहनना होगा। उधर,मायावती और अखिलेश यदि अपनी सीटें बचाने में कामयाब रहे तो यूपी में विपक्ष की सियासत का नया रास्ता तय होगा।