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लखनऊ

नूर जहां बेगम केस का हवाला देकर कोर्ट ने सिर्फ शादी के लिए धर्मांतरण को बताया अस्वीकार्य, जानें क्या है ये केस

धर्म परिवर्तन कर की गई शादी को न स्वीकारते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि इस तरह की शादी वैध नहीं है। कोर्ट का कहना है कि बिना बिना आस्था विश्वास के धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है।

लखनऊOct 31, 2020 / 10:38 am

Karishma Lalwani

वैवाहिक जोड़े की याचिका में हस्तक्षेप से इंकार कर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कह सिर्फ शादी के लिए धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं

वैवाहिक जोड़े की याचिका में हस्तक्षेप से इंकार कर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कह सिर्फ शादी के लिए धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं

लखनऊ. धर्म परिवर्तन कर की गई शादी को न स्वीकारते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि इस तरह की शादी वैध नहीं है। कोर्ट का कहना है कि बिना बिना आस्था विश्वास के धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने विपरीत धर्म के जोड़े की याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं को संबंधित मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराने की छूट दी है। दरअसल, याची द्वारा उनके वैवाहिक जीवन में परिवार की दखलअंदाजी को रोकने के लिए कोर्ट में याचिका दी गई थी। कोर्ट ने नूर जहां केस का हवाला देते हुए वैवाहिक जोड़े की याचिका में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।
कोर्ट ने कहा है कि एक याची मुस्लिम तो दूसरा हिंदू है। लड़की ने 29 जून 2020 को हिंदू धर्म स्वीकार किया और एक महीने बाद 31 जुलाई को विवाह कर लिया। रिकार्ड से स्पष्ट है कि शादी करने के लिए धर्म परिवर्तन किया गया है। कोर्ट ने नूर जहां बेगम के केस का हवाला देते हुए कहा कि शादी के लिए धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है। इस केस में हिंदू लड़कियों ने धर्म बदलकर मुस्लिम लड़के से शादी की थी। सवाल था कि क्या हिंदू लड़की धर्म बदलकर मुस्लिम लड़के से शादी कर सकती है और यह शादी वैध होगी। कोर्ट ने कहा कि इस्लाम के बारे में बिना जाने और बिना आस्था विश्वास के धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है। ऐसा करना इस्लाम के भी खिलाफ है। जस्टिस एम सी त्रिपाठी की एकल पीठ ने ये अहम फैसला सुनाया है।
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क्या है नूर जहां केस

कोर्ट ने छह साल पहले 2014 के नूर जहां बेगम उर्फ अंजलि मिश्रा के केस का हवाला देते हुए सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन स्वीकार नहीं है। इस केस में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी ने फैसला देते हुए कुरान की आयतों का जिक्र किया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पुराने ऑर्डर का जिक्र करते हुए कहा था कि आस्था या ईमान में किसी वास्तविक बदलाव के बगैर केवल शादी के लिए ही धर्म परिवर्तन या गैर मुस्लिम का धर्मांतरण करना गैरकानूनी और अमान्य है। ऐसी शादियां कुरान की आयत 221 सूरा दो में उल्लिखित बातों के खिलाफ हैं।
कोर्ट ने कहा था कि किसी लड़की या महिला से तब तक शादी मत करो, जब तक वे धर्म में विश्वास न करें। कोर्ट ने आदेश में ये भी कहा कि याचिकाकर्ता लड़कियों के अनुसार उन्हें इस्लाम के बारे में जानकारी या सच्ची आस्था नहीं है। धर्मांतरण के केस में नए धर्म के नियम, रीति और सिद्धांतों में सच्ची श्रद्धा होनी चाहिए।

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