आंगनबाड़ी केन्द्रों पर मनाया गया अन्नप्राशन दिवस
छह माह का होने के बाद बच्चे को मां के दूध के साथ ऊपरी आहार देना जरूरी

लखनऊ, राजीव नगर, मुल्लाहीखेड़ा, सरैया , टिकारी और शांति नगर सहित जिले के लगभग सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों पर मंगलवार को अन्नप्राशन दिवस मनाया गया। यह जानकारी जिला कार्यक्रम अधिकारी अखिलेन्द्र दुबे ने दी । उन्होंने बताया- कोरोना के संक्रमण के चलते आंगनबाड़ी केंद्र की गतिवधियां बाधित थीं लेकिन अब फिर से इन्हें शुरू किया गया है । पहले अन्नप्राशन दिवस माह की 20 तारीख़ को मनाया जाता था लेकिन अब यह माह के चौथे मंगलवार को मनाया जाता है। गतिविधि आंगनबाड़ी केंद्र पर की जा रही है।
अन्नप्राशन छह माह की आयु पूरे कर चुके बच्चों का मनाया जाता है। हमने आज विहान नाम के बच्चे को खीर खिलाकर उसका अन्नप्राशन किया | साथ ही बच्चे की माँ और अन्य महिलाओं को अन्नप्राशन के महत्त्व के बारे में बताया। महिलाओं को बताया गया कि छह माह तक बच्चे को केवल माँ का दूध ही देना चाहिए लेकिन उसके बाद बच्चे के लिए माँ का दूध पर्याप्त नहीं होता है इसलिए माँ के दूध के साथ ऊपरी आहार बहुत जरूरी होता है ताकि बच्चा स्वस्थ रहे ।
विहान की माँ प्रतिभा ने बतायाकि आज आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने हम सभी महिलाओं से कहा कि छह माह के बाद कहीं बच्चे कमजोर न हो जायें इसलिए बच्चे को मसली हुयी दाल, चावल,केला, आलू, सूजी की खीर खिलाएं। साथ ही इसमें तेल या घी भी डालें। बच्चे को थोड़ा – थोड़ा दिन में कई बार खिलाएं । इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे को अलग बर्तन में खाने को दें । खाना खिलाने से पहले उसके हाथ अच्छे से धोएं | जिस बर्तन में बच्चे को खाने को दें वह साफ़ हो ।
सरोजिनी नगर ब्लाक की बाल विकास परियोजना अधिकारी कामिनी श्रीवास्तव ने बताया – अन्नप्राशन हमारी संस्कृति का एक महत्पूर्ण भाग है। यह एक संस्कार है जो कि घरों में बच्चे के छह माह पूरे होने के बाद किया जाता है। इसे ही अब आंगनबाड़ी केन्द्रों पर सामुदायिक गतिविधि के रूप में मनाया जाता है जिसके माध्यम से लोगों को इसके महत्व के बारे में जागरूक किया जाता है ।
बक्शी का तालाब ब्लाक के बाल विकास परियोजना अधिकारी जय प्रताप सिंह ने बताया- बच्चों में कुपोषण का एक प्रमुख कारण समय से ऊपरी आहार नहीं शुरू करना भी है | इसलिए लोगों को अब अन्नप्राशन के माध्यम से जागरूक किया जा रहा है । समय से बच्चे को ऊपरी आहार देने से बच्चे का जहाँ शारीरिक व मानसिक विकास होता है वहीँ रोगों से लड़ने की क्षमता में वृद्धि होती है।
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