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लखनऊ

यूपी में अग्रिम जमानत व्यवस्था फिर लागू, लेकिन ऐसे मुकदमों में नहीं मिलेगी राहत

हाईकोर्ट के कहने पर योगी ने 43 साल बाद बदला इंदिरा गांधी का सबसे बड़ा फैसला
 

लखनऊJun 12, 2019 / 11:18 am

आलोक पाण्डेय

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यूपी में अग्रिम जमानत व्यवस्था फिर लागू, लेकिन ऐसे मुकदमों में नहीं मिलेगी राहत

लखनऊ . देश में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार के एक फैसले को योगी आदित्यनाथ की सरकार ने पलट दिया है। अब यूपी में भी गंभीर धाराओं में दर्ज मामलों में अग्रिम जमानत मिलेगी। दंड प्रक्रिया संहिता (आईपीसी) 1973 में अग्रिम जमानत संबंधित धारा-438 को फिर से लागू करने के विधेयक को राष्ट्रपति से मंजूरी मिल गई है। गौरतलब है कि इस व्यवस्था को वर्ष 1976 में आपातकाल के दौरान खत्म कर दिया गया था। बाद में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को छोडक़र अन्य राज्यों में अग्रिम जमानत की व्यवस्था बहाल हो गई थी। अरसे से उत्तर प्रदेश में भी इस व्यवस्था को फिर से लागू करने की मांग उठ रही थी, जिसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने प्रमुख सचिव गृह की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था।

अग्रिम जमानत के लिए कोर्ट में हाजिर होना जरूरी नहीं

समिति की सिफारिश के आधार पर दंड प्रक्रिया संहिता संशोधन विधेयक-2018 विधानमंडल में पारित कराकर राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजा गया था, जिसे राष्ट्रपति ने एक जून, 2019 को मंजूर करते हुए हस्ताक्षर कर दिए। ऐसे में संशोधित अधिनियम छह जून, 2019 से यूपी में लागू हो गया है। अब अग्रिम जमानत की सुनवाई के दौरान अभियुक्त का उपस्थित रहना भी जरूरी नहीं होगा। संबंधित मुकदमे में पूछताछ के लिए जब बुलाया जाएगा, तब पुलिस अधिकारी या विवेचक के समक्ष उपस्थित होना पड़ेगा। इसके अलावा मामले से जुड़े गवाहों व अन्य व्यक्तियों को न धमका सकेंगे और न ही किसी तरह का आश्वासन देंगे।

एससीएसटी एक्ट में नहीं मिलेगी अग्रिम जमानत

आपातकाल के दौरान प्रदेश सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता (उप्र संशोधन) अधिनियम, 1973 के तहत अग्रिम जमानत का प्रावधान खत्म कर दिया था। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-438 (अग्रिम जमानत का प्रावधान जिसमें व्यक्ति गिरफ्तारी की आशंका में पहले ही न्यायालय से जमानत ले लेता है) में अग्रिम जमानत की व्यवस्था का प्रावधान है। लेकिन अग्रिम जमानत की व्यवस्था एससीएसटी एक्ट समेत अन्य गंभीर अपराध के मामलों में लागू नहीं होगी। आतंकी गतिविधियों से जुड़े मामलों (अनलाफुल एक्टिविटी एक्ट 1967), आफिशियल एक्ट, नारकोटिक्स एक्ट, गैंगस्टर एक्ट व मौत की सजा से जुड़े मुकदमों में अग्रिम जमानत नहीं मिल सकेगी।
आवेदन के 30 दिन में करना होगा निस्तारण

विधेयक के तहत अग्रिम जमानत के लिए जो भी आवेदन आएंगे उनका 30 दिन के अंदर निस्तारण करना होगा। कोर्ट को अंतिम सुनवाई से सात दिन पहले नोटिस भेजना भी अनिवार्य होगा। अग्रिम जमानत से जुड़े मामलों में कोर्ट अभियोग की प्रकृति, गंभीरता, आवेदक के इतिहास, उसकी न्याय से भागने की प्रवृत्ति आदि पर विचार करके फैसला दिया जाएगा।
अग्रिम जमानत का मतलब भी समझिए

अग्रिम जमानत से मतलब है कि अगर किसी आरोपी को पहले से आभास है कि वो किसी मामले में गिरफ्तार हो सकता है तो वो गिरफ्तारी से बचने के लिए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत की अर्जी कोर्ट में लगा सकता है। कोर्ट अगर अग्रिम जमानत दे देता है तो अगले आदेश तक आरोपी व्यक्ति को इस मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।

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