क्यों हो रहा है इस सीट पर चुनाव कैंट विधानसभा की इस सीट पर 2017 में रीता बहुगुणा जोशी भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में विजयी हुई थीं। इससे पहले 2012 में भी रीता बहुगुणा जोशी ही इस सीट से विधायक थी लेकिन तब उन्होंने चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था। लखनऊ कैंट सीट 2012 से पहले बीजेपी के पास थी और मौजूदा भाजपा उम्मीदवार सुरेश तिवारी यहां से लगातार चुनाव जीत रहे थे। उन्होंने 1996 में पहला चुनाव जीता था। 2017 में भाजपा की टिकट पर चुनाव जीतने वाली रीता बहुगुणा जोशी को बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा ने लोकसभा की टिकट देकर सांसद बनवा दिया। तब से यह सीट खाली थी। इसलिए यहां चुनाव हो रहा है।
पंजाबी, सिंधी, ब्राह्मण और पहाड़ी मतदाताओं का जोर राजधानी की कैंट विधानसभा सीट में कुल 3,85,341 मतदाता हैं। इनमें से 2,09,870 पुरुष मतदाता और 1,75,447 महिला मतदाता है। इस सीट पर 24 मतदाता ट्रांसजेंडर भी हैं। यहां पंजाबी, सिंधी, ब्राह्मण और पहाड़ी मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। यही कारण है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की रीता बहुगुणा जोशी को कुल 95402 वोट मिले थे जबकि समाजवादी पार्टी की अपर्णा यादव को 61606 वोट मिले थे। कांग्रेस ने अपर्णा का समर्थन किया था। अब की बार कई दफे भाजपा के विधायक रहे सुरेश तिवारी फिर से मैदान में हैं। आरडीएसओ, रेलवे वर्कशॉप और अन्य राज्यसरकार व केन्द्र सरकार की कालोनियों के कारण यहां कर्मचारी मतदाताओं की भी संख्या अच्छी खासी है।
अखिलेश, मायावती और प्रियंका क्यों नहीं आए अब चर्चा इस बात की हो रही है कि इस चुनाव के प्रचार में यूपी की कमान संभालने वाली कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी क्यों नहीं आईं। सपा मुखिया अखिलेश यादव भी अपने उम्मीदवार के समर्थन में अब तक यहां नहीं दिखे। मायावती भी बसपा के लिए वोट मांगने नहीं आईं। कहा जा रहा है कि उप चुनाव में इन नेताओं ने प्रचार में हर विधानसभा जाने से गुरेज बरता। सपा के बड़े नेताओं के न आने के पीछे यह भी बताया जा रहा है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी की अपर्णा यादव रही थी और इस बार हो रहे उपचुनाव में सपा ने अपर्णा को प्रत्याशी नहीं बनाया है। पारिवारिक संकट से उबरने के लिए सपा के बड़े नेताओं ने यहां आने से परहेज किया है। वहीं मायावती और कांग्रेस महासचिव प्रियंका ने पहले ही अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी थी।
इस उप चुनाव के अहम मुद्दे यूं तो इस चुनाव में यहां कोई बड़ा मुद्दा सामने नहीं है। योगी और मोदी की छवि पर सुरेश तिवारी चुनाव लड़ रहे हैं वहीं कांग्रेस और सपा अपने वजूद को साबित करने के लिए संघर्षरत हैं। छावनी क्षेत्र विकास की नजर से काफी पिछड़ा हुआ है। यहां की खस्ता हाल सड़कें और बिजली पानी जनता को परेशान तो करती हैं, पर वे चुनावी मुद्दा बनते नहीं दिख रहीं। विपक्ष कानून व्यवस्था, अपराध और बेरोजगारी के मुद्दों को उछाल रहा है।