बढ़ रहे मामले सीडब्ल्यूसी की सदस्य सुधा रानी ने बताया कि साल दर साल इस तरह के मामले बढ़ रहे हैं। कई बच्चे काउंसलिंग में आते हैं जिनमे से अधिकतर मोबाइल फोन के आदी पाए जाते हैं। ऐसे बच्चों को सीडब्ल्यूसी में प्यार से हैंडल करने के बाद उनमें सुधार लाया गया। उन्होंने बताया कि काउंसलिंग में बच्चों के साथ-साथ उनके माता पिता का भी दोष निकाला जाता है। माता पिता पहले बच्चों की इस आदत पर गौर नहीं करते व उसमें सुधार नहीं लाते हैं। जब बच्चे इसके आदी हो जाते हैं, तो उन्हें डांट कर बदलने का प्रयास करते हैं। जब बच्चे माता पिता के इस बर्ताव को बर्दाश्त नहीं कर पाते तो घर छोड़ कर भाग जाते हैं।
परिवार में समय बिताने की आदत डालें ज्यादातर माता पिता अपने बच्चों को चुप कराने के लिए मोबाइल फोन पकड़ा देते हैं। यह आगे चल कर घातक बन सकता है। बाल संरक्षण अधिकारी आसमा जुबैर ने बताया कि माता पिता की यह आदत आगे चलकर मुसीबत बन सकती है। बदलते परिवेश में मोबाइल की लत के चलते बच्चे परिवार में समय नहीं दे पाते। इसलिए यह जरूरी है कि माता पिता बच्चों को मोबाइल में ज्यादा समय बिताने की जगह परिवार में समय बिताने की आदत डलवाएं।
बच्चों में मोबाइल की लत को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बीमारी माना है। अगर मोबाइल पर गेम खेलते हुए बच्चों को रोका जाए या उनसे मोबाइल छीना जाए और वह गुस्से से रिएक्ट करें, तो समझिए कि वह गेमिंग डिसऑर्डर का शिकार हो रहा है। इसका असर बच्चों की सिर्फ मेंटल ही नहीं बल्कि फिजिकल हेल्थ पर भी पड़ता है। बच्चों में तेजी से मजर आने वाली ओबेसिटी, बिहेवियर चेंज, खानपान में अरुचि, इस तरह के लक्षण गेमिंग डिसऑर्डर के कारण हो सकते हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने ऑफिशियल तौर पर अपने इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ़ डिजीज के ग्यारहवें एडिशन में गेमिंग को डिसऑर्डर की तरह जोड़ा है यानी अब से गेमिंग की लत को मानसिक बीमारी के रूप में देखा जा सकता है।