जन्मस्थली को नहीं भूले नसीरुद्दीन शाह नसीरुद्दीन शाह कि ये जन्मस्थली थी बाराबंकी शहर के घोसियाना मोहल्ले में मौजूद एक खंडरनुमा इमारत जो आज कि तारीख में मोहम्मद युनुस की संपत्ति है। पचास के दशक में जब ये खंडरनुमा ईमारत राजा जहांगीराबाद की आलीशान कोठी हुआ करती थी और राजा जहांगीराबाद की इस आलीशान कोठी में सेना के एक अधिकारी इमामुद्दीन शाह का परिवार रहा करता था। 20 जुलाई 1950 को इमामुद्दीन शाह के घर एक बेटा पैदा हुआ, जिसने इसी कोठी के में लड़खड़ा लड़खड़ा कर चलना सीखा और जब ये बच्चा तीन चार साल का ही था तभी इमामुद्दीन शाह का तबादला हो गया और उनका परिवार यहां से चला गया और फिर साठ सालों के बाद जब यही नन्हा-मुन्ना बच्चा इस कोठी में आया तो वो आलिशान कोठी तो खंडरनुमा ईमारत में तब्दील होकर गुमनामी के अंधेरो में खो चुकी थी। लेकिन वो नन्हा मुन्ना बच्चा हिंदी फिल्म जगत का मशहूर अदाकार नसीरुद्दीन शाह बन चुका था। लेकिन शोहरत की बुलंदियों को छूने के बाद भी नसीरुद्दीन शाह अपनी जन्मस्थली को नहीं भूले और उसे तलाशने की जुस्तुजू करते रहे।
नसीरुद्दीन शाह ने यहां गुजारा था काफी समय एक लम्बे अरसे बाद जब नसीरुद्दीन शाह यहां पहुंचे तो सब कुछ बदल चुका था और वो आलिशान कोठी जो कभी उनकी किलकारियों से गूंजा करती थी। अपनी बदहाली के दौर से गुजर रही कोठी का काफी हिस्सा गिर चुका था। लेकिन नसीरुद्दीन अपनी जन्मस्थली के बचे हुए हिस्से में ऐसा खोए जैसे उनके बचपन की यादें माजी से निकलकर उनके सामने आ गई हो। उन्होंने कोठी के एक कमरे की तरफ इशारा किया कि शायद मैं इसी कमरे में पैदा हुआ था और उस कमरे के सामने खड़े होकर फोटो खिंचाया।
मालिक के पास आया फोन नसीरुद्दीन शाह के आने के साथ ही इस गुमनाम ईमारत को एक नयी पहचान मिल चुकी है। इस कोठी और नसीरुद्दीन शाह के रिश्ते का पता चलने के बाद इस कोठी के मौजूदा मालिक मोहम्मद युनुस और उनका परिवार भी काफी खुश है। मोहम्मद युनुस ने बताया कि कुछ दिनों पहले उनके पास एक फोन आया और फोन करने वाले ने उनसे कहा कि नसीरुद्दीन शाह साहब आपके मकान में सन 1950 में पैदा हुए थे और वो अपनी जाये पैदाइश को देखना चाहते हैं। मोहम्मद युनुस को लगा कि किसी ने मजाक किया होगा और बात आयी गयी हो गयी।
हमेशा याद रहेगा वो लमहा फिर अचानक एक दिन फोन आया और फोन करने वाले ने खुद को नसीरुद्दीन शाह बताते हुए कहा कि मैं रास्ते में हूं और एक आध घन्टे में आ रहा हूं। अगर आपको कोई ऐतराज न हो तो मैं अपनी पैदाइश की जगह आना चाहता हूं। फिर अचानक वे आ गए। हम ये सोच रहे थे की हो सकता है कि कोई गलत मैसेज मिला हो। बहरहाल वे खुद आए और ये हम लोगो की खुशनसीबी है कि इतना बड़ा अदाकार जो हिन्दुस्तान ही नहीं पूरी दुनिया में फिल्मों और कामर्शियल फिल्मों का बेताज बादशाह है और वह हमारे सामने बिल्कुल एक दो फिट की दूरी पर खड़ा था। तो एक ताज्जुब तो हुआ और आज भी वो एक अजीब सा लम्हा महसूस होता है। एक ख्वाब सा लगता है। सोचा भी नहीं था कि कभी वे यहां आएंगे।