मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित डा.शर्मा ने कि मेरे लिए पुस्तक मेले का एक अलग आकर्षण रहा है। मैं 2006 से पुस्तक मेले में आ रहा हूं। यहां उमड़ने वाले भीड़ हमेशा मुझे संतोष के साथ गर्व का अनुभव कराती है कि हमारे नगर में बुद्धिजीवी वर्ग है। उन्होंने कहा कि इंटरनेट संचालित माध्यमों के वर्तमान दौर में जानकारी बहुत जल्द मिल जाती है। कोरोना काल में हमने आनलाइन शिक्षा को क़रीब से देखा और कण्टेंट अपलोड कराया है। पुस्तकों की महत्ता कभी नहीं खत्म होने वाली। मेले की थीम आत्मनिर्भर भारत की चर्चा करने के साथ उन्होंने कहा कि ऐसे पुस्तक मेलों में आकर पता चलता है कि वास्तव दुनिया में कितना विस्तृत ज्ञान है।
इस अवसर पर उन्होंने एक पत्रिका ‘सिटी एसेन्स’ का विमोचन भी किया। उद्घाटन समारोह में अध्यक्षता कर रहे पूर्व मेयर डा.दाऊजी गुप्ता ने भी पुस्तकों के महत्व पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इंटरनेट पर हरदम सही जानकारी नहीं मिलती। इससे आज मोबाइल फोन में संसार सिमट आया है पर हो रहा है। भारतीय भाषाओं की महत्ता बताते हुए उन्होंने कहा कि आक्सफोर्ड डिक्शनरी के 40 लाख शब्दों में पांच लाख शब्द संस्कृत के हैं। इससे पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए संयोजक मनोज सिंह चंदेल ने नवाबी शहर में लगभग दो दशक पुरानी पुस्तक मेलों की परम्परा का जिक्र क्रमशः होते बदलाव के साथ किया और कहा कि हमारे लिए मीडिया का सहयोग हमेशा अहम रहा है।
अफसोस यह है कि पिछले साल कोविड-19 के दुरूह काल के कारण तय होने के बावजूद कोई भी मेला नहीं हो पाया पर प्रसन्नता की बात है अब नियमों में ढील होने के कारण यह मेला आयोजित हुआ है। यहां संरक्षक वरिष्ठ अधिवक्ता बाबू रामजी दास, प्रदेश ओलम्पिक संघ के उपाध्यक्ष टीपी हवेलिया ने भी अपने विचार रखे। इस अवसर पर मंच पर आप्टीकुम्भ के मिशन लीडर ऋषभ रस्तोगी, विश्वम के यूपी त्रिपाठी व विशाल श्रीवास्तवव निदेशक आकर्ष चंदेल भी मंच पर उपस्थित थे। दीप प्रज्ज्वलन के साथ ही युगल कथक नृत्यांगना ईशा रतन-मीशा रतन ने ईश वंदना प्रस्तुत की।