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लखनऊ

‘इरफान खान मेरे प्रिय थे, लेकिन घर की मुर्गी नहीं’; बेटे बाबिल बोले- बाबा लिख नहीं पाते थे, उनकी आंखें बोलती थीं

‘एक्टर क्या होता है? ये इरफान खान ने अच्छी तरह समझ लिया था। वो कहते थे- मुझे खुद में कुछ भी बदलाव नहीं करना है। अपनी ही आवाज रखनी है’।

लखनऊJan 10, 2023 / 04:00 pm

Krishna Pandey

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जब इरफान खान बीमार हुए तो मेरे ऊपर दबाव आ गया। लोग कहने लगे कि आपके इरफान खान के साथ अच्छे संबंध हैं, यह मौका है, किताब लिख दीजिए। लेकिन मैं इरफान खान को किसी मौके के रूप में नहीं देख रहा था। मैं किसी मौके पर इरफान खान का इस्तेमाल करूं यह मेरे लिए संभव भी नहीं था। यह लाइन है फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज की, जिन्होंने इरफान की बातों और यादों को समेटते हुए एक किताब लिखी है। किताब का नाम है ‘और कुछ पन्ने कोरे रह गए…इरफान।
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इसी किताब का जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में ‌विमोचन था। सबसे खास बात यह थी कि इस विमोचन कार्यक्रम में इरफान खान के बेटे बाबिल खान, इरफान के गुरू डॉ. रवि चतुर्वेदी और बॉलीवुड लेखक और स्क्रीनप्ले राइटर रामकुमार सिंह भी मौजूद थे।
सबसे पहले पढ़िए बाबिल के हिस्से के इरफान खान के बारें में…

बाबा मेरे पिता नहीं दोस्त थे, जो मुझे बहुत हंसाते थे
बाबिल ने अपने पिता को याद करते हुए कहा क‌ि अब्बा (इरफान खान) मेरे सबसे अच्छे दोस्त थे। लोग उनकी एक्टिंग से उनकी जिंदगी का अंदाजा लगाते हैं। जबकि वे किरदार के बाहर एक अलग तरह के व्यक्ति थे। मैं हमेशा उनके नजदीक रहता था। वे मेरे पास जब भी रहते थे, खूब हंसाया करते थे।

यहां तक कि हम कभी ऐसे कोई इवेंट में चले जाते थे, जहां वे बोर हो जाते थे तो मुझे वहां से उठाकर कोने में लेकर चले जाते थे। वहां के लोगों के हाव भाव को एक्ट कर बताते थे। हम वहां खूब हंसा करते थे। आज मेरे पास ऐसे बहुत से फोटोज हैं, जहां हम बात कर खूब हंस रहे हैं। वो किसी से भी दोस्ती किया करते थे, उसकी दुनिया अलग बना देते थे। मेरे और मां के सबसे अच्छे दोस्त थे।

इरफान खान को पतंग उड़ाने का बहुत शौक था, ‘बाबा फटी पतंग को भी उड़ा देते थे’
बाबिल ने कहा- बाबा (इरफान) को पतंग उड़ाना इतना पसंद था कि वो जयपुर आकर मुझे भी भूल जाते थे। पतंग देखते ही उनसे रहा नहीं जाता था। वो सबकुछ भूलकर पतंग उड़ाने चले जाते थे। मैं चाहता था कि वे मेरे पास रहे। इसलिए खुन्नस में उनका मांझा काट देता था। पतंग फाड़ देता था। फटी पतंग को वो सही करते थे। फिर उसे उड़ाते थे। मैं चाहता था वे मेरे साथ वक्त बिताएं, लेकिन पतंग उड़ाने की धुन में वो मुझे भी भूल जाते थे। इससे मैं उदास भी हो जाता था।
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बाबा नहीं चाहते थे मैं एक्टर बूनं, लेकिन…
बाबिल ने कहा- पिता नहीं चाहते थे कि मैं एक्टर बनूं। वे कुछ और ही चाहते थे। हालांकि उन्हें अंदाजा जरूर था कि मैं एक्टिंग करना चाहता हूं। जब मैं छोटा था तो बाबा अमेरिका में शूट कर रहे थे। मैं भी उनके साथ गया था। वहां मैं आसपास के बच्चों को इकट्ठा कर सीन क्रिएट करता रहता था। इसे देखकर अमेरिकन पेरेंट्स काफी परेशान रहते थे।

पिता से शिकायत करते थे। लेकिन बाबा को अच्छा लगता था। इसी बात को बोलते हुए बाबिल मजाकिया अंदाज में कहते हैं कि मैं इंडियन लड़का गोरो को एकजुट करके कुछ कर रहा होता था तो बाबा को बहुत सुकून मिलता था।

बाबा को लिखना नहीं आता था, बाबा आंखों से बोलते थे
बाबिल खान ने कहा- बाबा का इनर वर्ल्ड बड़ा ही स्ट्रॉन्ग था। वो अपनी आंखों और शब्दों से अभिनय करते थे। अभिनय उनके भीतर से निकलता था। बाबा लिखने से बचते थे। इसलिए वह हर जगह अपनी भाव-भंगमिया से ही अपनी बात कह देते थे।

बाबिल को लिखने का शौक है, जिंदगी के दर्द को लिख देते हैं
बाबिल ने बताया कि बाबा लिखने से बचते थे और मुझे लिखना बहुत पंसद है। मैं अपनी जिंदगी के हर दर्द को ‌लिख देता हूं। मैं अपने अंदर के भावों को शब्दों के जरिए पिरोता हूं। सोशल मीडिया पर लिखता रहता हूं ।
अब पढ़िए गुरु के हिस्से में इरफान की यादों के बारें में…
इरफान के गुरु बोले- हमेशा डांट खाता था, लेकिन आज उस पर गर्व है
इरफान के गुरु डॉ. रवि चतुर्वेदी ने कहा- इरफान उनके उन चुनिंदा शिष्यों में से थे, जिन्हें मैंने सबसे ज्यादा डांटा। वो नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से निकलने के बाद तक मुझसे डांट खाते रहे।

मुंबई में गोविन्द निहलानी सहित कई बड़े फिल्म निर्माता, निर्देशकों से मेरे गहरे संबंध थे। इरफान इस बात को अच्छी तरह जानते थे। उन्होंने कई बार मुझसे खुद को इंट्रोड्यूस करने के लिए कहा, लेकिन मैं उन्हें साफ मना कर देता था। मैं कहता था मेरे कहने से तुम्हारी प्रतिभा का सही आकलन नहीं हो पाएगा। मैंने उन्हें उनके एक बेहतरीन अभिनय की वीडियो कैसेट उन्हें दी। कहा- जिससे मिलो कोशिश करके उसे ये जरूर दिखा देना। यही तुम्हें काम दिलाएगी।

इरफान खान के गुरु ने बेटे बाबिल को दिया सबक, अनब्रोकन लाइन पकड़कर रखना
रवि चतुर्वेदी अपने शिष्य को याद करते हुए कहते हैं कि- इरफान ने अपने आप को खुद गढ़ा है। हम पूरे दिन भी रिहर्सल करते थे। हर वक्त सीखने की ललक बरकरार रहती थी। आज मेरे साथ उनके बेटे हैं। उन्हें यही कहूंगा कि एक अनब्रोकन लाइन पकड़कर रखना। कभी काम मिलेगा, कभी नहीं मिलेगा, वेट करना पड़ेगा।

अनब्रोकन लाइन आदमी की रीढ़ की हड्डी होती है, जो उसे इधर-उधर नहीं होने देती है। उसका एक आइडियोलॉजिकल और फिजिकल स्ट्रक्चर बेस बन जाता है। इरफान ने अपनी अनब्रोकन लाइन बनाए रखी थी।

आज वही खासियत उन्हें अलग बनाती है। चतुर्वेदी ने कहा- जब मैंने चिली के फ्रीडम स्क्वायर पर कई बिल्डिंग्स जितना बड़ा इरफान का कटआउट देखा तो उस पर गर्व हुआ। लगा कि मेरे सिखाया हुए बच्चे ने आज सीना चौड़ा करवा दिया। यह स्पाइडर मैन फिल्म का पोस्टर था।
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मैंने कभी सोचा नहीं था मैं इरफान पर किताब लिखूंगा: अजय ब्रह्मात्मज
इरफान खान के बारें में अजय बताते हैं कि हर बार इरफान मुझे एक नए इरफान दिखते थे। लेकिन उस बदले हुए इरफान के अंदर वह असली इरफान नहीं बदलता था। यही बात उन्हें औरों से अलग बनाती हैं। सभी को लगता है मेरे और इरफान के बची बहुत गहरे रिश्ते थे लेकिन इरफार मेरे लिए घर की मुर्गी नहीं थे। इरफान हमें अजय भाई जरूर कहते थे लेकिन मेरे लिए इरफान, इरफान थे। मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं किताब लिखूंगा, लेकिन अब आप सबके सामने किताब है, अब आप सभी ‌किताब पढ़कर तय कीजिए मेरे हिस्‍से में कौन से इरफान हैं।

किताब में लिखें हैं 36 हस्तियों के संस्मरण, लेखक अजय ब्रह्मात्मज ने बताया कि इरफान कहते थे मैं जैसा हूं, रहूंगा
प्रसिद्ध पत्रकार और साहित्यकार अजय ब्रह्मात्मज ने कहा- इस पुस्तक में इरफान से जुड़े 36 हस्तियों के संस्मरण हैं। इन्होंने अपने-अपने हिस्से का इरफान इसमें शेयर किया है। इसमें इरफान की भाषा है। वो कैसे सोचते थे? कैसे बोलते थे? जो इसे पढ़ेगा अमीर होकर निकलेगा। अजय ने कहा- एक्टर क्या होता है? ये इरफान ने अच्छी तरह समझ लिया था। वो कहते थे- मुझे खुद में कुछ भी बदलाव नहीं करना है। अपनी ही आवाज रखनी है। अपना ही चेहरा रखना है। मैं जैसा हूं, रहूंगा। अपने मिजाज के साथ एक्ट करूंगा।


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दस दिन में ही बिक गईं 1000 ई-बुक्स, पहली बार किताब का किया विमोचन
वहीं इरफान पर लिखी अपनी पुस्तक को लेकर अजय ब्रह्मात्मज ने कहा कि इस पुस्तक को छपे दो साल से ज्यादा समय हो गया है लेकिन मैंने इसे सार्वजनिक नहीं किया। आज पहली इसकी प्रतियों को आपके समक्ष लेकर आया हूं। दो साल पहले इसे ई-बुक के रूप में अमेजन पर अपलोड किया गया था तब दस दिन के भीतर ही इसकी 1 हजार प्रतियां बिक गईं।
उनका कहना है कि ‘और कुछ पन्ने अधूरे रह गए…इरफान। सभी फिल्म और इरफान प्रेमियों के लिए एक जरूरी किताब है। यह उनकी जीवनी नहीं है। इसमें उनके साक्षात्कार और उन पर लिखे संस्मरण हैं। यह पुस्तक इरफान के अनोखे व्यक्तित्व को उन्हीं के शब्दों में उभारती है। उनके मित्रों-परिचितों के संस्मरण उनके व्यक्तित्व के अनेक पहलुओं को व्यक्त करते हैं। इरफान को जानने-समझने के लिए यह एक अंतरंग किताब है।

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