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लखनऊ

पुण्य कर्मों के उदय होने पर ही शुभ कार्य का बनता है योग

दीपक बुझने लगता वह उसमें घी डाल देती।

लखनऊJul 13, 2019 / 11:32 am

Ritesh Singh

charbagh jain mandir puja yog

पुण्य कर्मों के उदय होने पर ही शुभ कार्य का बनता है योग

लखनऊ। चारबाग दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे प्रवचन में शुक्रवार को मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज ने कहा कि पुण्य कर्मों का उदय होने पर ही शुभ कार्य करने का योग होता है धर्म प्रभावना होती है। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति ने एक बार यह नियम लिया की जब तक दीपक जलेगा तब तक सामायिक करेगा और उसने सामायिक को प्रारंभ किया जब दीपक बुझने लगा तब उसकी धर्म पत्नी ने देखा कि मेरे पति भगवान की आराधना कर रहे हैं और उनकी आराधना में कोई विघ्न न पड़े इस लिए जैसे ही दीपक बुझने लगता वह उसमें घी डाल देती।
धीरे-धीरे काफी समय व्यतीत हो गया जो व्यक्ति सामायिक कर रहा था उसका प्यास के मारे गला सूख गया परंतु उसने अपने नियम को नहीं तोड़ा और उसकी मृत्यु हो गई वह व्यक्ति अगले भव में मेंढक के रूप में पैदा हुआ और उसने 1 दिन औरतों को बातें करते हुए सुनाओ कि भगवान महावीर स्वामी के समोसारण की स्थापना हुई है तो उसके मन में विचार आया कि वह भी समोसारण में जाकर बैठेगा और भगवान के दर्शन करेगा परंतु रास्ते में एक हाथी के पैर के नीचे आकर उसकी मृत्यु हो गई लेकिन भगवान के समोशरण में जाने की भावना एवं भगवान के दर्शन की भावना के कारण वह देव गति को प्राप्त हुआ।
जैसे ही वह देव बनके स्वर्ग में पहुंचा उसे अवधि ज्ञान से ज्ञात हुआ कि उसे देव गति किस कारण से मिली है तो वह तत्काल भगवान के समोसारण में पहुंच गया। महाराज श्री ने बताया कि आचार्य गुरुवर कहते हैं कि इस जन्म में न सही और भव में मिलता है अपनी करनी का फल भव भव में मिलता है सिद्धो की आराधना करने से सुख की प्राप्ति होती है जिससे समयक ज्ञान प्राप्त हो जाता है तीर्थंकर भगवान छायक सम्यक दर्शन के ज्ञानी होते हैं जो कि क्षय नहीं होता है।
इससे पूर्व महाराज श्री को शास्त्र भेंट अखिलेश जैन बबलू भैया, आचार्य श्री 108 विराग सागर महाराज के चित्र के आगे दीप प्रज्वलन पीयूष जैन ने किया। सिद्धो की आराधना करने से सुख की प्राप्ति होती है सिद्ध भगवान 8 गुणों से सहज होते हैं जब हमारे भाव अच्छे होते हैं तभी हम धर्म की प्रभावना में करते हैं और आगे चलकर सम्यक दर्शन को प्राप्त कर सकते हैं परंतु जिनमें जममअतं कषाय होता है उनके अंदर तीव्र मिथ्यातव का उदय होता है वह कभी सम्यक दर्शन प्राप्त नहीं कर सकते हैं।

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