आशा कार्यकर्ताओं को दी जाए जिम्मेदारी
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि शिक्षकों की मतदान के दिन ड्यूटी लगाने से अधिक फर्क नहीं पड़ता क्योंकि यह एक या दो दिन की बात होती है। सामान्यता स्कूल बंद रहते हैं। मुख्य समस्या शिक्षकों को बीएलओ बनाने पर आती है क्योंकि इन्हें चुनाव से पहले लंबा प्रशिक्षण दिया जाता है। इस दौरान अधिकतर सरकारी स्कूलों में आधी से अधिक कक्षाएं शिक्षक रहित हो जाती हैं जिससे पढ़ाई बाधित होती है। इसलिए मंत्रालय ने प्रस्ताव दिया है कि शिक्षकों की बजाय आशा कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी दी जाए।
मिलेंगे 12000 रुपये
मंत्रालय का तर्क है कि बीएलओ से उम्मीद की जाती है कि वह पोलिंग क्षेत्र के स्थानीय लोगों को जानता पहचानता हो जिससे किसी भी प्रकार की गड़बड़ी रोकी जाए। इस काम में आशा कार्यकर्ता बेहतर साबित हो सकती हैं क्योंकि उनका काम ही घर-घर जाकर जानकारी लेना होता है। इसी तरह बीएलओ के काम के लिए मिलने वाले ₹12000 सालाना की राशि बेहतर वेतन पाने वाले शिक्षकों के लिए खास मायने नहीं रखती जबकि आशा कार्यकर्ता के लिए यह अच्छी खासी रकम है। इस मामले में मंत्रालय और नीति आयोग की कुछ बैठक हो चुकी है और नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत इसे लेकर चुनाव चुनाव आयोग को एक पत्र भी लिख चुके हैं। अधिकारी ने स्पष्ट किया है कि इस बारे में कोई भी फैसला अगले साल होने वाले आम चुनाव के बाद लिया जाएगा।