ठगों ने खुद किया खुलासा ये खुलासा पुलिस की गिरफ्त में आये ठगों ने ही किया है। दरअसल गाजियाबाद पुलिस की साइबर सेल ने तीन साइबर ठग को गिरफ्तार किया था। इन तीनों ठगों को लैप्स पॉलिसी के नाम पर ठगी की शिकायत मिलने पर गिरफ्तार किया गया था। पुलिसिया तफ्तीश के दौरान इन लोगों ने जो खुलासे किये उससे पुलिस के होश उड़ गये।
जॉब के दौरान करते थे साइबर ठगी ये तीनों ठग बेरोजगार भी नहीं थे बल्कि ये जॉब करते हुए लोगों के साथ साइबर ठगी का काम कर रहे थे। इन तीनों ने पिछले चार सालों में एक हजार से ज्यादा लोगों के साथ ठगी की है। पुलिस के मुताबिक इन तीनों ने कई अन्य साइबर क्राइम करने वाले गिरोह के साथ भी अपने सारे डेटा को शेयर किया है।
जितना बड़ी पॉलिसी उतना बड़ा पैसा दरअसल साइबर ठगी करने वाले गिरोह के लोग इस तरह की थर्ड पार्टी के लिए काम करने वाले लोगों संपर्क करते हैं। ये जानते हैं कि इनके पास ग्राहकों की काफी डिेटेल होती है। फिर ये गिरोह, पैसों का लालच देकर इन कर्मचारियों से ग्राहकों की डिटेल माँगते हैं। थर्ड पार्टी के कर्मचारी, कंपनी के ग्राहकों के डेटा को शीट में कॉपी कर लेते है। एक शीट में करीब 40 लोगों की डिटेल होती है। फिर ये 7 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से डेटा बेचते हैं। किसी-किसी केस में या जिनकी पॉलिसी बड़ी होती है उस मामले में 10 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से भी डेटा बेचा जाता है। जिनकी पॉलिसी छोटी होती है उनका डेटा 5 रुपये में बिकता है।
एक बार में 5 हजार लोगों का बेचते थे डाटा एक बार में कम से कम 5 हजार लोगों का डेटा लिया जाता है। इसमें भी बोली लगाई जाती है। इन तीनों ठगों ने बताया कि साइबर गिरोह एक दिन में एक दिन में 10 तक कॉल कर देते हैं।
ठगे गये व्यक्ति का महंगा बिकता है डेटा सबसे चौंकाने वाली बात ये रही कि ये साइबर गिरोह उन व्यक्तियों का डेटा को ज्यादा तरजीह देते हैँ जो हाल-फिलहाल में ठगे गये हों। इन व्यक्तियों के डेटा के लिए ये गिरोह 2000 रुपये प्रति व्यक्ति तक देते हैं। दरअसल ये साइबर क्रिमिनल ऐसे लोगों से विभिन्न शिकातय सुनने वाली एजेंसी के नाम पर दोबारा ठगी करते हैं, और पीड़ित व्यक्ति इनके झाँसे में आकर इन्हें जानकारी भी दे देता है। ये साइबर गिरोह आपस में डेटा का आदान-प्रदान भी करते हैं। ताकि अलग-अलग तरीके से लोगों को ठगा जा सके।